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किचन गार्डन में लौकी की खेती कैसे करें | Lauki ki Kheti Kaise Kare in Kitchen Garden

टेरेस/किचन गार्डन में लौकी की खेती (lauki ki kheti kaise kare), लौकी की बुवाई के मिटटी तैयार करना, बुवाई का समय, आर्गेनिक खेती, लौकी की खेती में कीट नियंत्रण, अधिक पैदावार के लिए पौधे की वैज्ञानिक कटिंग, पोलिनेशन का ध्यान रखना

भारत में शायद ही कोई ऐसा होगा जो लौकी (lauki) से अच्छे से वाकिफ न हो, लौकी मूलतः कद्दू की ही एक किस्म महत्वपूर्ण फल सब्जी है, जिसे अंग्रेजी में Bottle Gourd कहा जाता है. मधुमेह, वजन को कम करने, पाचन क्रिया सुधारने व कोलेस्ट्रॉल आदि को नियंत्रित करने के साथ प्राकृतिक सुन्दरता (Natural Beauti/Glow) पाने के लिए लौकी (lauki) बहुत ही फायदेमंद है.

आज भारत के लगभग सभी घरों में लौकी के कई प्रकार के व्यंजन बनाये जाते हैं- मसलन लौकी का रायता, लौकी के कोफ्ते (lauki ke kofte), लौकी का हलवा (lauki ka halwa), लौकी की बर्फी (lauki ki barfi) आदि. आयुर्वेद में लौकी का तेल (lauki ka tel) अपना विशेष महत्व रखता है.

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किचन गार्डन में लौकी की खेती (Bottle Gourd Farming in Kitchen Garden)

आर्गेनिक तरीके से उगाई गई प्रत्येक लौकी में विटमिन B, C, आयरन (Folic Acid), मैग्नीशियम, पोटैशियम और सोडियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. आर्गेनिक तरीके से उगाई गई प्रत्येक लौकी में गंभीर बीमारियों से लड़ने की क्षमता होती है और यह एक औषधि की तरह काम करती है.

तो प्रश्न यह है कि आर्गेनिक तरीके से लौकी को कैसे उगाया जाये, जिससे लौकी का सम्पूर्ण लाभ लिया जा सके? असल में अधिकतर नए किचन/टेरेस गार्डन अथवा बागवानी प्रेमियों को शिकायत होती है कि हम अपने किचन गार्डन में सीजनल बागवानी के साथ लौकी की खेती (lauki ki kheti – Bottle Gourd Farming) तो करना चाहते हैं लेकिन सही जानकारी न होने के कारण हमारे लौकी के पौधे अच्छी ग्रोथ नहीं कर पा रहे?

कई नए लोगों की यही शिकायत रहती है कि पौधे लगाने के बाद उन पौधों की ग्रोथ अच्छी तरीके से नहीं चल पा रही है. तो इसका समाधान क्या है? इसी समाधान के लिए आज हम आपके साथ किचन गार्डन में लौकी की खेती कैसे करें, के बारे में विस्तृत जानकारी साझा करने जा रहे हैं.

आशा है दी जा रही जानकारी को आप अच्छे से समझकर अपने किचन गार्डनिंग की स्किल को एक नए लेवल पर पहुंचा सकते हैं और आर्गेनिक तरीके से उगाई गई लौकी का लुफ्त भी उठा सकते हैं. तो चलिए शुरू करते हैं. सबसे पहले बात करते हैं, किचन गार्डन में लौकी की खेती के लिए बीज चुनाव की-

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लौकी के बीज व बुवाई समय-

आज बाजार में लौकी की फसल तैयार करने के लिए 02 तरह के बीज मिलते हैं और साल में दो बार फसल उगाई जाती है-

  1. ग्रीष्म कालीन फसल के लिए  ‒  जनवरी से मार्च तक
  2. वर्षा कालीन फसल के लिए   ‒   जून से अक्टूबर के आखिर तक

किचन गार्डनिंग व टेरेस गार्डनिंग के तहत गमलों या ग्रो बैग में लौकी की अच्छी उपज लेने के लिए आप समयानुसार लौकी के बीजों का चयन कर लें. किचन गार्डनिंग के तहत अच्छी उपज लेने के लिए कोशिश करें आप वर्षा कालीन लौकी के बीज के पौधे को लगाएं, 

ऐसा इसलिए क्योंकि ग्रीष्म ऋतु में पक्की ईंटो से बने मकान अत्यधिक गर्म हो जाते हैं, और यदि आप लौकी के पौधे को छत आदि पर रखते हैं तो पौधा गर्मी के कारण ख़राब अथवा मर सकता है या फिर लौकी का पौधा अच्छी उपज देने में सक्षम नहीं हो पाता है.

अत: किचन व टेरेस गार्डनिंग के तहत बागवानी शुरू कर अच्छी उपज लेने के लिए मौसम आदि का विशेष ध्यान रखना जरूरी है. 

कहां से लें-

अमूमन लौकी के बीज आपको अपने क्षेत्र के सहकारी व प्राइवेट बीज भंडार से आसानी से मिल जाते हैं. आप इसके बीजों को ऑनलाइन भी मंगा सकते हैं लेकिन ऑनलाइन तभी खरीदें जब आपको लौकी के बीजों की अच्छी पहचान करना आता हो. वहीं यदि आपके क्षेत्र में कोई बीज भंडार नहीं है तो अपने क्षेत्र की पौध नर्सरियों से संपर्क कर वहां से ले सकते हैं.

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लौकी की विभिन्न किस्में-

  1. कोयम्बटूर‐1 (जून व दिसम्बर तक)
  2. अर्का बहार (खरीफ और जायद दोनों मौसम में)
  3. पूसा समर प्रोलिफिक राउन्ड (बसंत और ग्रीष्म ऋतुओं में)
  4. पंजाब गोल (बसंत कालीन मौसम में)
  5. पुसा समर प्रोलेफिक लाग (गर्मी और वर्षा दोनों ही मौसम में)
  6. नरेंद्र रश्मि (दोंनों ऋतुओं में)
  7. पूसा संदेश (दोंनों ऋतुओं में)
  8. पूसा हाईब्रिड‐3 (दोंनों ऋतुओं में)
  9. पूसा नवीन (दोंनों ऋतुओं में)

लौकी की खेती के लिए गमलो की मिट्टी तैयार करना-

किचन गार्डनिंग के तहत उच्च स्तर की बागवानी करने में सबसे अहम भूमिका निभाती है- soil media मतलब पौधों की मिट्टी की. आमतौर पर हममें से कई लोग इस चीज पर कोई खास ध्यान नहीं देते है, बस पौधों को सीधे गमलो की मिट्टी में लगा देते हैं और पानी के साथ कुछ बेसिक खाद आदि देकर अपना पीछा छुड़ा लेते हैं, 

इसके बाद इंतजार करते हैं कि हमारा लगाया गया पौधा जल्द से जल्द बड़ा होकर अच्छे फल व फूल देना शुरू कर दे, लेकिन जब पौधा अच्छे फल व फूल नहीं देता तो कहते हैं कि वो पौधा ही ख़राब है. समस्या यह नहीं है कि पौधा ख़राब है, बल्कि मुख्य समस्या यह है कि हमें सही जानकारी नहीं है.

किचन गार्डनिंग के तहत किसी भी तरह से पौधे को (गमले में टमाटर की उन्नत खेती) ग्रो करने में हमें जिस मिट्टी या soil media की जरूरत होती है, उसे आसानी से घर पर बनाया जा सकता है. लौकी के पौधे को उगाने के लिए हमें जिस तरह की मिट्टी आवश्यकता होती है उसे बनाने के लिए हमें इन चीजों की जरूरत होती है- 

  1. साधारण उपजाऊ गार्डन मिट्टी या कोकोपीट- 04 भाग
  2. गोबर/वर्मी कम्पोस्ट खाद– 04 भाग
  3. नीम खली- 50 से 75 ग्राम
  4. नदी की मिट्टी (मोरंग)- 02 भाग
  5. धान की भूसी (वैकल्पिक)- 1/2 (आधा) भाग

नोट- किचन गार्डनिंग में विशेष तौर पर कीटाणु नाशक के रूप में नीम खली ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर का उपयोग किया जाता है. आप इसके स्थान पर केमिकल फर्टिलाइजर का उपयोग भी कर सकते हैं. लेकिन प्रश्न यह है कि आप आर्गेनिक फल खाना चाहते हैं या केमिकल आधारित.

उपरोक्त सभी बताये गए घटकों की मात्रा को 20 इंच या इससे ऊपर के गमले/ग्रो बैग के अनुसार ली गई है, जिसे आपस में मिलकर वांछित मिट्टी तैयार कर लेनी है. इसके बाद ही मिट्टी में लौकी के पौधों को गमलों या ग्रो बैग में स्थानांतरित (transplant) कर लगाया जाता है.

बीज से पौध तैयार करना-

बाजार से लौकी के बीज को लाने के बाद एक डिस्पोजल पेपर कप या गिलास में ऊपर तक पानी भर कर उसमें कम से कम लौकी के 05 बीजों को 24 से 48 घंटो के लिए भिगो दें.

कम से कम 24 घंटों बाद इन बीजों की रोपाई seedling ट्रे अथवा डिस्पोजल पेपर कप या गिलास में 50% साधारण उपजाऊ गार्डन मिट्टी या कोकोपीट और 50% गोबर/वर्मी कम्पोस्ट खाद भरकर उसमें करना है. यहाँ बीजों की रोपाई करते समय बीज के नुकीले भाग को नीचे की ओर और दूसरे भाग को ऊपर की ओर करके मिट्टी में 01 से डेढ़ इंच नीचे रोपना है. उसके बाद बीज रोपे गए पात्र में अच्छे से पानी देना है.

बीज की रोपाई के बाद करीब 06 से 07 में लौकी के पौधे पूरी तरह से अंकुरित होकर बहार निकाल आएँगे. जो पूरी तरह से स्वस्थ्य और मजबूत होंगे. इसके बाद इन बीज से तैयार हुई पौध को वांछित गमले में स्थानांतरित करना होता है.

नोट- seedling tray अथवा डिस्पोजल पेपर कप या गिलास में अंकुरण से पहले पानी के निकासी (ड्रेनेज) के लिए होल (छिद्र) बनाना बिल्कुल न भूलें.

पौध को गमलों में स्थानांतरित करना-

एक बार जब हमारी पौध पूरी तरह से तैयार हो जाती है तो इसके बाद अगले चरण में हमें पौधों को बड़ी क्षमता के गमलों या ग्रो बैग्स में स्थानांतरित करना जरूरी होता है. किचन गार्डनिंग या टेरेस गार्डनिंग के तहत लौकी के पौधों से बेहतर उपज लेने के लिए हमें कम से कम 24 से 30 इंच के गमलों या ग्रो बैग्स का चुनाव करना चाहिए. 

नोट- यदि आप टेरेस (छत पर) गार्डनिंग के तहत लौकी के पौधे लगा रहे हैं तो मेरे सुझाव से आप गमलों के स्थान पर ग्रो बैग का प्रयोग करें.

गमलों के चयन के बाद सबसे पहले गमलों में पानी निकासी/ड्रेनेज का प्रबंधन करना है. उसके बाद तैयार की गई मिट्टी को वांछित पात्र के मुहाने से 01 इंच नीचे तक भर कर अच्छे से पानी देकर लगभग 24 घंटों के लिए छोड़ देना है, इससे पात्र की मिट्टी अच्छे से पात्र में स्थित हो जाएगी. 

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अगले दिन पात्र की मिट्टी में हल्की गुड़ाई कर अंकुरित हो चुकी लौकी पौध को 24 से 30 इंच के गमलों या ग्रो बैग्स में एक दूसरे से 03 इंच की पर 02 पौधों को लगाकर थोड़ा से पानी दे देना है. साथ ही आपका गमला ऐसे स्थान पर होना चाहिए, जहां दिन भर की धूप व सीधे सूर्य के प्रकाश आता हो.

इसके बाद आपको अपने लौकी के पौधों में इतना ही पानी देने की आवश्यकता है, जितने में उसकी मिट्टी की नमी हमेशा बरक़रार रहे. इसके साथ ही आपको गमलों में बांस आदि की लम्बी क्षणे भी लगानी होंगी क्योंकि लौकी का पौधा एक बेल वाला पौधा होता है.

लौकी की खेती के तहत पौधों की कटिंग करना-

करीब 25 दिनों बाद लौकी के पौधों की अच्छी ग्रोथ आपको दिखाई देगी. अब शुरू होता है अगला चरण, जिसमें हमें लौकी के पौधों की प्रूनिंग करनी है. लौकी के पौधों से बेहतर उपज लेने के लिए हमें बन्जी कटिंग करनी होती है. अब प्रश्न यह है कि ये बन्जी कटिंग या 3G कटिंग क्या होती है?

3G कटिंग- 

पौधे के अंकुरण के बाद शाखा से mother leaf को छोड़कर जो तीसरा पत्ता निकलता है उसे पौधे का थर्ड जनरेशन या तीसरी पीढ़ी कहते हैं और 3G कटिंग में पौधे के तीसरे पत्ते के बाद के भाग को काट दिया जाता है, जिससे पौधा बच गए पत्तों के मुहाने से नई-नई शाखाएं विकसित करता है, और जिससे पौधे के पास अधिक संख्या में फूल व फल देने के लिए अधिक शाखाएं होती है. इसी तर्ज पर 2G व 1G कटिंग भी की जाती है.

बन्जी कटिंग-

पौधे के अंकुरण के बाद पौधे की मुख्य शाखा के ऊपरी छोर को काट दिया जाता है. इस कटिंग प्रकिया (Cutting Method) को पौधे की बन्जी कटिंग कहते हैं. किचन गार्डनिंग या टेरेस गार्डनिंग के तहत लौकी के पौधों की बेल को जमीन आदि पर नहीं फैलाया जाता है बल्कि जाल आदि मदद से जमीन से ऊपर ही फैलाया जाता है. 

बन्जी कटिंग से कटिंग सिरे पर नई बेलों का विकास होता है जिसे किसी जाल आदि पर आसानी से फैलाया जा सकता है. कटिंग आदि के बाद पौधे को वर्मी कम्पोस्ट या लीफ कम्पोस्ट की खाद प्राथमिकता पर जरूर दें. इसके साथ ही यदि जरूरी लगे तो पौधे को रोगाणुओं के खतरे से बचाने के लिए ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर का छिडकाव जरूर करें.

नोट- किसी भी तरह की कटिंग करने से पहले कटिंग औजारों को अच्छे से सैनिटाईज जरूर कर लें.

ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर और रोगाणुनाशक-

एक बेहतरीन ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर और रोगाणुनाशक जिसका निर्माण हम अपने घर पर आसानी से और कम कीमत पर तैयार कर सकते हैं. इसका इस्तेमाल करने से आपके लौकी के पौधों पर लौकी के पौधे की ग्रोथ बहुत तरह से होती है. घर पर ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर बनाने के लिए सिर्फ एक चीज की जरूरत होती है और वह है- नीम खली, नीम का तेल और सरसों की खली.

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02 लीटर पानी में करीब 07 से 10 ml नीम के तेल को मिलाकर पौधे व उसकी पत्तियों पर स्प्रे कर देना है, आप 15 दिनों के अंतराल पर इस ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर का उपयोग कर सकते हैं. नीम खली को आप सीधे पौधे की जड़ में गुड़ाई कर दे सकते हैं. 

साथ ही 20 से 30 ग्राम सरसों की खली को 02 लीटर पानी में 24 घंटे भिगोकर जो मिश्रण तैयार होता है उसे सीधे या छानकर लौकी के पौधे को सप्ताह में एक बार ही देना होता है. इसे देने से लौकी के पौधे में ढेर सारे नर और मादा फूल आते हैं जो पोलिनेशन के बाद फल (लौकी) में परिवर्तित हो जाते हैं.

पानी की मात्रा संतुलित करना-

जब लौकी के पौधों में फूल आने शुरू हो जाते है तो सप्ताह में एक बार या महीने में 02 बार सरसों खली से बने मिश्रण को जरूर दें. साथ फूल आने के बाद पौधे को बस उतना ही पानी देना है, जितने में उसकी मिट्टी में नमी बनी रहे. सर्दियों के मौसम में गमले आदि में लगे पौधों को 02 से 03 दिन के अंतराल पर पानी दिया जाता है. 

इसके साथ ही जैसे-जैसे पौधे की शाखाएं बड़ी होकर फैलती हैं तो इन शाखाओं का उचित प्रबन्धन किया जाना प्राथमिक अनिवार्यता है क्योंकि इन्ही शाखाओं में पहले लौकी के फूल और फिर फल (लौकी) लगते है. छत आदि पर पौधे की शाखाए अच्छे से फैले, इसके लिए छत पर बांस की डंडियाँ व बायोनेट भी लगा सकते हैं.

लौकी की खेती के तहत पोलिनेशन का ध्यान रखना-

अब तक आपका लौकी का पौधा फल देने लायक विकसित हो चुका है, जब पौधे में फूल आना शुरू हो जाते हैं तो यह जरूरी हो जाता है कि आए हुए फूल फलों (लौकी) में आसानी से परिवर्तित हो जाए. पौधे के फूल फलों में तभी बदलते हैं जब एक फूल के परागकण दूसरे फूल के परागकण से निषेचित हो जाए. 

अमूमन परागकणों का निषेचन फूलो का रस चूसने वाले कीट-पतंगे जैसे- मधुमक्खी और तितलियों द्वारा स्वत: ही किया जाता है, लेकिन बढ़ते प्रदूषण व कम हरियाली की उपलब्धता के कारण आज शहरों में इन कीटों का आवागमन बहुत ही कम मात्रा में होता है. 

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यदि आप चाहते हैं आपके गार्डेन में ये कीट प्राकृतिक रूप आकषित हों तो आप अपने गार्डेन में तेज सुगंध के साथ चटक रंग के फूलों के पौधे प्राथमिकता पर जरूर लगाएं.

यदि फिर भी ये कीट आपके गार्डेन में नहीं आ रहे हैं तो लौकी के फूलों का पोलिनेशन (पराग निषेचन) आपको मैन्युअल तरीके से करना होता है. मैन्युअल तरीके से पोलिनेशन करने के लिए आप कान साफ करने वाली स्टिक (क्षण) की मदद से एक नर फूल के परागकणों को लेकर दूसरे मादा फूल के परागकणों में सावधानी से मिलाना होता है. यह पराग निषेचन प्रक्रिया बहुत ही ध्यान व हल्के हाथों से की जाती है, जिससे फूल को कोई क्षति न पहुचे और पराग निषेचन भी सुगमता से हो जाए.

ऐसा करने से जिन फूलो में पराग निषेचन प्रक्रिया अच्छे से हुई होगी वो फूल कुछ समय बाद फल की शक्ल में आ जाते है और जल्द ही विकसित होकर एक तंदरुस्त लौकी में परिवर्तित हो जाते हैं.

लौकी के पौधे में लगने वाले रोग-

मौलिक तौर पर अधिकांश सब्जियों के पौधों पर पौधों को नुकसान पहुचाने वाले कीटों का आक्रमण होता ही होता है, अगर समय रहते इन कीटों का समुचित समाधान नहीं किया जाए तो ये कीट पौधे का सम्पूर्ण सर्वनाश करने में भी सक्षम होते हैं.

लौकी के पौधे पर भी पौधे को क्षति पहुचाने वाले कीट एक बार जरूर आक्रमण करते हैं. इसलिये यह जरूरी हो जाता है कि लौकी के पौधे की देखभाल संजीदगी से करी जाए. अमूमन लौकी के पौधे में कीटों की वजह से कुछ रोग देखने को मिलते हैं. जैसे-

  1. लौकी के पौधे की पत्तियों का सफ़ेद हो जाना.
  2. पनपती लौकी का काला होकर स्वत: ही गिर जाना.
  3. पत्तियों का रंग पीला पड़ जाना.
  4. पौधे में अच्छी ग्रोथ का न होना.
  5. पौधा बढ़ते-बढ़ते मुरझा जाना.

ये कुछ रोग हैं जो किचन गार्डनिंग या टेरेस गार्डनिंग के तहत लौकी के पौधे में ख़ास तौर पर देखने को मिलते हैं. इसका समाधान यह है कि अगर लौकी के पौधे की पत्तियां सफ़ेद हो रही हैं साथ ही यदि पनपती लौकी का काली होकर स्वत: ही गिर जा रही है तो समझ लीजिए कि आपके लौकी के पौधे पर कीटों का आक्रमण हुआ है, इनसे निजात पाने के लिए आप पौधे पर कीटनाशक (ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर) का हर सप्ताह में एक बार अच्छे से जरूर करें.

ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर (कीटनाशक) बनाने की विधि ऊपर बताई जा चुकी है. इसके साथ ही जब आपको लगे कि पौधा कीट मुक्त हो चुका है तो ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर (कीटनाशक) का उपयोग 15 दिन में एक बार ही करें.

वहीं यदि पौधे की पत्तियों का रंग समय से पहले पीला हो जा रहा है व पौधे में अच्छी ग्रोथ नहीं दिख रही है तो समझ जाइए कि पौधे की मिटटी में पोषक तत्वों की कमी हो गयी है, पौधे की मिट्टी में हल्की गुड़ाई के बाद खाद व खाद में नीम खली मिलाकर दें.

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इसके साथ ही यदि लौकी का पौधा बढ़ते-बढ़ते मुरझा जा रहा है तो समझ जाइए कि पौधे के गमले का पानी निकासी छिद्र (ड्रेनेज होल) बंद हो गया है जिससे गमले में अतिरिक्त पानी ठहर रहा है. इसका तुरंत निपटान/समाधान किया जाना बेहद जरूरी है अन्यथा पौधे की जड़ें पानी में गल जाएंगी और पौधा मर जाएगा.

लौकी की खेती को हार्वेस्ट करना-

यदि आपने सब कुछ चरणबद्ध तरीके से किया है तो लगभग 03 महिनो बाद आप अपनी लौकी की हार्वेस्टिन्ग करना शुरू कर सकते हैं। किचन गार्डनिंग या टेरेस गार्डनिंग के तहत तैयार लौकियो को सुबह शाम एक एक कर ही हार्वेस्ट करें. 

पूरी तरह से ऑर्गेनिक प्रक्रिया द्वारा उगाई गयी लौकियां खाने में बेहद स्वादिस्ट होने के साथ-साथ पर्याप्त पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं, यदि आप स्वाद के शौकीन हैं तो ये ऑर्गेनिक लौकियां आपको बहुत पसंद आएंगी. 

FAQ.

लौकी का खेती कब करें?

लौकी की खेती ग्रीष्म काल में जनवरी से मार्च तक और वर्षा ऋतु में जून से अक्टूबर के आखिर तक की जाती है.

लौकी का बीज कितने दिन में उगता है?

बुवाई के बाद लगभग 05 से 07 दिनों के भीतर लौकी का बीज अंकुरित हो जाता है.

लौकी के पौधे में कौन सी खाद डालें?

लौकी ही नहीं बल्कि किसी भी तरह कि आर्गेनिक खेती के लिए सबसे उत्तम वर्मी कम्पोस्ट खाद मानी जाती है.

छत पर लौकी की खेती के लिए कम से कम कितने इंच के गमले की आवश्यकता होती है?

किचन गार्डेन अथवा टेरेस गार्डन के तहत लौकी की खेती के लिए कम से कम 18 इंच के गमले या ग्रो बैग की आवश्यकता होती है.

लौकी के आकार की दूसरी सब्जी कौन सी होती है?

जुकीनी, जिसे चप्पन कददू के नाम से जाना जाता है, आकार में लम्बा होने के कारण जुकीनी लगभग लौकी की तरह दिखती परन्तु रंग में जुकीनी सामान्य कददू के रंग में होती है.

अंत में-

स्वास्थ्य की दृष्टी से लौकियां खाना हमारे शरीर को बेहतर बनाता है और किचन गार्डनिंग व टेरेस गार्डनिंग के तहत लौकी को तैयार करना भी थोड़ी देख-रेख के बाद आसानी से हो जाता है. यदि आप चाहते/चाहती हैं कि आप भी ऑर्गेनिक सब्जियों का लुफ्त उठा पाएं तो लौकी को अपने किचन गार्डेन या टेरेस (छत) गार्डेन में जरूर उगाएं.

हमारा उद्देश्य सभी किचन गार्डनिंग व टेरेस गार्डनिंग (बागवानी) प्रेमियों को बेहतर से बेहतर जानकारी प्रदान करना है, जिससे वे अपनी बागवानी योग्यताओं को बेहतर से बेहतरीन बना सके और अपने द्वारा तैयार की गई ऑर्गेनिक सब्जियों से लाभ उठा सकें.

आशा है आपको इस लेख ‘किचन गार्डन में लौकी की खेती कैसे करें’ से किचन व टेरेस गार्डनिंग के तहत लौकी की खेती के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी जरूर मिली होगी, साथ ही… यदि कुछ छूट गया हो या कुछ पूछना चाहते हों तो कृपया comment box में जरूर लिखें. तब तक के लिए-

शुभकामनाएं आपके कामयाब और सफल बागवानी के लिए

धन्यवाद!

जय हिंद! जय भारत!

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