Agricultureभारत में सफल संतरे की खेती कैसे करें

भारत में सफल संतरे की खेती [Orange Farming] कैसे करें

संतरे की खेती [Orange Farming]: दुनिया में प्रसिद्ध “संतरा” नीबू वर्ग की रसीले फलदार वाली नकदी फसल है जो शुष्क/गर्मियों के दिनों में बाजार में बड़ी तादात में देखने को मिलती है. संतरा मूल रूप से खट्टा-मीठा और रस से भरपूर नारंगी रंग का फल होता है, जिसे लगभग हर उम्र के लोग खाना पसंद करते हैं.

संतरे का वैज्ञानिक नाम “सिट्रस” है और आज मॉडर्न खेती के दौर में संतरा- नारंगी, लाल, पीला और कहीं-कहीं पर हरे रंग में भी देखने को मिलता है. संतरा न सिर्फ अपने स्वाद के लिए प्रसिद्ध है बल्कि संतरे में कई सारे स्वास्थ्य को लाभ पहुचाने वाले  लाभकारी गुण भी होते हैं.

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एक संतरे में विशेषरूप से विटामिन सी, विटामिन ए, फोलेट, पोटैशियम, कैल्शियम और फाइबर की एक अच्छी मात्रा समाहित होती है, जिससे संतरा हमारे शरीर के लिए एक अच्छा इम्युनिटी बूस्टर भी माना जाता है.

संतरे की खेती गर्म और उमस भरी जलवायु वाले क्षेत्रों में सबसे अधिक उत्तम मानी जाती है साथ ही संतरे की खेती को सफलता पूर्वक करने के लिए कुछ घटकों पर विचार करना जरूरी होता है, मसलन- उपयुक्त मिट्टी, प्राकृतिक जल और उचित और सुरक्षित खेती तकनीकों आदि घटकों के समायोजन के साथ संतरे को बड़ी ही आसानी के कहीं भी उगाया जा सकता है.

इसके साथ ही अन्य फलदार फसलों की तरह ही संतरे की खेती में भी विभिन्न प्रकार के रोगों और कीटों के आक्रमण का निदान किया जाना जरूरी तथा उचित तरीकों से संतरे के पौधों की सेवा व समय-समय पर देखभाल करना भी जरूरी होता है.

वैज्ञानिकों के मुताबिक संतरे का सेवन न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है, बल्कि इनका नियमित तौर पर सेवन करने से मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य में भी सुधार हो सकता है. संतरों का सेवन मानव शरीर को ताजगी और ऊर्जा का अनुभव कराता है साथ ही इसका स्वाद आत्मानुभव भी बढ़ाता है.

आज इस पोस्ट के माध्यम से हम आपके साथ संतरे की खेती के बारे में विस्तार से जानकारी देने का प्रयास कर रहे हैं. इस पोस्ट में संतरे की खेती से जुड़े घटक जैसे- उपयुक्त मिट्टी, बिजाई, रोपाई, प्रूनिंग, कीट व रोग प्रबंधन के अलावा उत्पादन तथा हार्वेस्टिंग आदि के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे-

संतरे की खेती के लिए जलवायु-

संतरे की खेती अथवा संतरे की बागवानी के लिए (बीज बुवाई) न्यूनतम 10 से 250C तथा पौधे को विकसित होने के लिए अधिकतम 25 से 350C तापमान की आवश्यकता होती है. सामान्य तौर पूरे भारत में यह तापमान एक निश्चित अवधी के लिए उपलब्ध होता है.

चूंकि संतरा वानस्पतिक वृद्धि वाली नकदी फसल है, जिस कारण भारत की सामान्य जलवायु में संतरे के पौधे तेजी से बढ़ते हैं. ठंड/पाले अथवा कम तापमान वाली जलवायु में संतरे की खेती को बड़े स्तर की हानी होती है. जिससे इच्छुक किसान अथवा उद्यमी को फसल का जोखिम भी उठाना पड़ सकता है.

अतः यदि आप सफल संतरे की खेती करना चाहते/चाहती हैं तो निर्धारित जलवायु “बसंत ऋतु (फरवरी से मार्च) और मानसून के मौसम में (अगस्त से अक्तूबर अंत)” के अनुसार ही संतरे के पौधों का रोपण करें. अब आइये जानते हैं संतरे की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी कौन सी मानी जाती है-

संतरे की खेती के लिए मिट्टी का चयन-

अमूमन भारत में पायी जाने वाली हर प्रकार की उपजाऊ (अच्छी ड्रेनेज या जल निकासी वाली तथा पर्याप्त सूर्य प्रकाश प्राप्त करने वाली) मिट्टी संतरे की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है.

व्यवसायिक तौर पर की जाने वाली संतरे की खेती के लिए भारत के सफल किसान उचित जल निकासी वाली हल्की दोमट मिट्टी जिसका pH मान 6 से 8 के बीच हो, को सबसे उत्तम मानते हैं.

भारत में संतरे की खेती मुख्य रूप से महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में सफलतापूर्वक की जाती है.

संतरे की खेती के लिए मिट्टी/खेत की तैयारी-

सफल संतरे की खेती के लिए खेत की मिट्टी में पुरानी फसलों के मौजूद अवशेषों व पराली आदि को हटाकर खेत की गहरी जुताई की जाती है. इसके बाद खेत में कल्टीवेटर से कम से कम तीन आड़ी-तिरछी जुताई भी की जाती है, जिससे गहराई तक मिट्टी को उलट-पलट कर फंगस मुक्त किया जा सके. इसके बाद खेत में पाटा लगाकर उसे समतल बनाना होता है.

पाटा लगा लेने के बाद अथवा पहले भी खेत की मिट्टी में आवश्यक खाद जैसे- गोबर की खाद और NPK (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश) आदि खेत की उपजाऊ क्षमता के मुताबिक मिलाना होता है. चूंकि भारत के राज्यों में कई प्रकार की मिट्टी का समावेश देखने को मिलता है, इसलिए मिट्टी की उपजाऊ क्षमता के मुताबिक ही खाद की मात्रा का निर्धारण किया जा सकता है.

मौलिक पैमाने पर प्रति एकड़ संतरे की खेती पहले साल के लिए गोबर की खाद (प्रति पौधा) 12 किग्रा0, नाइट्रोजन 120-150 ग्राम, फास्फोरस 40-80 ग्राम और पोटाश 70-120 ग्राम तक का चुनाव किया जाना चाहिए. इसके बाद के वर्षों के लिए बताई गई खाद की मात्रा को क्रमशः दो, तीन, चार गुना तक बढ़ाते जाना है.

इसके आलावा रासायनिक खादों जैसे- जिंक सल्फेट या अन्य टॉनिक खादों का प्रयोग भी किया जा सकता है. बाजार में मिलने वाली घुलनशील खादों के छिड़काव से भी संतरे की पैदावार पर काफी अच्छा प्रभाव पड़ता है का भी चयन किया जा सकता है.

नोट- रासायनिक खादों/उर्वरक का प्रयोग करने से पूर्व खेत की मिट्टी परिक्षण अवश्य करा लें.

संतरे की किस्में-

भारत में संतरे की उगाई जाने वाली किस्मों में-

  1. नागपुरी संतरा (Nagpur Orange): यह एक लाल रंग का संतरा होता है और इसका छिलका आसानी से छिल जाता है. यह भारत के महाराष्ट्र राज्य के नागपुर क्षेत्र से सम्बंधित है जो विश्व प्रसिद्ध है.
  2. खासी संतरा, (khasi Orange)
  3. कुर्ग संतरा,
  4. पंजाब देसी,
  5. दार्जिलिंग संतरा व
  6. लाहौर लोकल आदि प्रमुख हैं.

नागपुर का संतरा भारत एवं विश्व का सुप्रसिद्ध सर्वोत्तम संतरा है.

संतरे के पौधे तैयार करना-

संतरे के पौधों को खेत में लगाने से पूर्व संतरे के पौधों को नर्सरी में तैयार किया जाता है. इसके लिए संतरे के सर्वोच्च गुणवत्ता वाले बीजों को पॉलीथिन बैग में मिट्टी (आप इसे सीधे खेत में भी कर सकते हैं) भरकर तैयार किया जाता है. हर बैग में दो से तीन बीज ही उगाने चाहिए. अनुकूल वातारण में संतरे के बीजों को अंकुरित होने में लगभग दो से तीन सप्ताह तक का समय लग सकता हैं.

क्या संतरे की खेती लायक संतरे के पौधे को कलम से उगाया जा सकता है?

हाँ, संतरे के पौधे को कलम से भी उगाया जा सकता है, मौजूदा आधुनिक कृषि में सफल संतरे की खेती करने का सबसे प्रभावी प्राकृतिक तरीका है.

कलम से उगाए गए पौधों की सामान्यत: प्रारंभिक देखभाल, सही जलवायु और अनुकूल मिट्टी की चयन के अलावा संतरों के पौधों को समय-समय पर जल और खाद आदि की आवश्यकता होती है.

कलम से उगाई गई पौधों की देखभाल करने के लिए समय-समय पर पानी देना, कीटों और रोगों का प्रबंधन करना आदि शामिल है.

समय के साथ धीरे-धीरे संतरे के पौधे विकसित होते जाते हैं और लगभग 10 से 12 महीनो के भीतर ही फल देने लगते हैं. कलम द्वारा उगाए गए संतरों के
पौधों से पहली फसल नहीं लेनी चाहिए, इससे पौधे का विकास शिथिल हो जाता है, जिससे पौधा उतना उत्पादन देने में सक्षम नहीं हो पाता, जितना उसे होना चाहिए.

पौधे की रोपाई व दूरी निर्धारण-

पौधे से पौधे की दूरी= कम से कम 5 X 5 मीटर रखनी चाहिए, इसके अलावा पौधे की रोपाई के लिए कम से कम 1 X 1 X 1 मीटर गहरे खोदे गड्ढे में करनी चाहिए अथवा इच्छुक किसान अपने क्षेत्र अनुसार भी दूरी का चयन कर सकता है.

नोट- रोपाई के लिए गड्ढा, रोपाई के कम से कम 04 दिन पहले खोदना चाहिए, साथ ही इस गड्ढे में 5 से 15 किग्रा0 तक गोबर की खाद व 02-05 ग्राम तक दीमक, फफूंद नाशक जैसे घटकों से भर कर छोड़ देना चाहिए. इस प्रकिया से खेत की उर्वरकता बढ़ती है, साथ ही क्षति पहुचाने वाले कीटों व रोगों से भी छुटकारा मिल जाता है. यह सभी चरणों को ध्यान में रखते हुए, संतरे की उन्नत खेती की जा सकती है.

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सिंचाई-

सदाबाहार प्रकृति के कारण संतरे की सिंचाई साल में कई बार की जाती है. सिंचाई की आवश्यकता मिट्टी की किस्म पर निर्भर करती है. संतरे की खेती में सिंचाई मौसम के हिसाब से निर्धारित होती है, पौधा रोपण के तुरंत बाद अच्छी तरह से पूरे खेत में सिंचाई करनी चाहिए जिससे पौधा मुरझाये ना.

ठंड के दिनों में लगभग 01 महीने के अंतराल में एक बार सिंचाई की आवश्यकता होती है, वहीं गर्मी के मौसम में लगभग हर 10 से 12 दिन के अंदर सिंचाई आवश्यकता होती है.

इसके साथ ही जब फूल निकलने के समय और फलों के विकास के समय आता है तब भी उचित मात्रा की सिंचाई जरूरी होती है. इसके अलावा जल-जमाव से बचाव तथा सिंचाई का पानी नमक-रहित होना भी जरूरी है. यह अवश्यक चरण है.

खरपतवार नियंत्रण-

संतरे की खेती में खरपतवार नियंत्रण दो तरीको से किया जा सकता है-

  1. हाथ से गोडाई करके
  2. केमिकल/रासायनों द्वारा

ग्लाइफोसेट 1 लीटर को प्रति 100 लीटर पानी के अनुपात में मिलाकर खरपतवार वाले स्थानों पर स्प्रे करें. ग्लाइफोसेट की स्प्रे मुख्य फसल पर ना करें. यदि संभव हो तो खरपतवार नाशक का उपयोग संतरे के फूल निकलने से पहले करे.

संतरे का पौधा कब फल देता है?

संतरे का पौधा आमतौर पर अपनी पूरी मात्रा में फसल/फल देने में लगभग 3 से 5 साल ले लेता है. यह इस पर निर्भर करता है कि पौधा किस उपयुक्त मौसम की स्थिति में है, जैसे- उपयुक्त जलवायु, मिट्टी की गुणवत्ता और समय-समय पर देखभाल का प्रदान किया जाना आदि.

जब पौधा विकसित होता है तब यह फल देने लगता है. फलों के पकने में भी कुछ समय लगता है, लेकिन यह आमतौर पर वर्ष के विभिन्न मौसमों में फलता है.

संतरे के पौधे में लगने वाले रोग व कीट की रोकथाम व उपचार-

संतरे के पौधों में कुछ सामान्य रोग देखने को मिलते हैं-

  1. कानपर्दी का रोग (Citrus Canker): यह एक प्रकार की फफूंदी होती है जो पत्तियों, डालों और फलों पर दिखाई देती है. बॉर्डीऑक्स 1 % स्प्रे, एक्यूअस घोल 550 पी पी एम, स्ट्रैप्टोमाइसिन सल्फेट भी सिटरस कैंकर को रोकने में लाभदायक हो सकती है.
  2. वायरस संक्रमण (Viral Infections): कुछ वायरसी संक्रमण जैसे कि सिट्रस ट्री स्पोटेड वायरस (Citrus Tristeza Virus) और सिट्रस येलो स्ट्रीक वायरस (Citrus Yellow Strikey Virus) पौधों को प्रभावित कर सकते हैं. मैटालैक्सिल व ट्राइकोडरमा लाभदायक हो सकती है.
  3. Phytophthora और फसली संक्रमण (Fungal Infections): इन्फेक्शन जैसे कि रूट रोट, क्राउन रोट, और लीफ ड्रॉप रोग पौधों को प्रभावित कर सकते हैं. कार्बेनडाज़िम व बॉर्डीऑक्स से शोधन करना चाहिए.
  4. लकड़ी का कीट (Wood Borers): ये कीट जैसे- सिटरस सिल्ला, पत्ते का सुरंगी कीट, शाख छेदक, स्केल कीट, पत्ते का सुरंगी कीट, चेपा व मिली बग आदि पौधों की जड़ों और डालों को हानि पहुंचा सकते हैं, जिससे पौधे की स्थिरता पर प्रभाव पड़ता है. इसके उपचार के लिए स्थानीय नर्सरी या विषय विशेषज्ञ अथवा स्थानीय कृषि संसथान से संपर्क करें. अथवा पाइरीथैरीओड्स या कीट तेल का स्प्रे प्रयोग में लिया जा सकता है.
  5. फल का फफूंद होना (Fruit Rot): इसमें फलों पर फफूंदी पैदा होने लगती है, जो फलों की गुणवत्ता को कम अथवा उपयोग रहित कर सकती है.

नोट-

  • इन रोगों को पहचानने और नियंत्रण के लिए नियमित रूप से पौधों की जांच की जानी चाहिए और उचित प्रबंधन उपायों को तुरंत अपनाना चाहिए.
  • रोगों के समय पर पहचान और उपचार के लिए सतर्क रहना बहुत महत्वपूर्ण है ताकि पौधों को संभाला जा सके और उनके उत्पादकता को बनाए रखा जा सके.

फसल की हार्वेस्टिंग-

संतरा फसल की हार्वेस्टिंग जनवरी से मार्च के बीच की जाती है. जब फलों का रंग पीला या नारंगी और देखने में आकर्षक दिखाई दें, तब उन्हें डंठल सहित काटकर अलग कर लेना चाहिए.

आप जानते ही होंगे कि डंठल सहित फल काटने से फल ज्यादा समय तक ताज़ा बने रहते हैं. संतरों को तोड़ने के बाद फलों को पानी से अच्छे से धोयें फिर क्लोरीनेटड 2.5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर इसमें फलों को भिगो कर धोएं, इसके बाद एक एक कर छायादार स्थान पर सुखाएं.

इसके बाजार में भेजने से पहले हर संतरे पर सिट्राशाइन वैक्स फोम या रैपर लगाएं। फिर इन फलों को बक्सों में पैक कर बाजार के लिए रवाना कर सकते हैं.

संतरे के फायदे-

संतरा सेहत के लिए काफी लाभप्रद होता है. मसलन-

  1. संतरा है विटामिन सी का स्रोत: संतरा विटामिन सी का एक अच्छा स्रोत होता है, जो शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत करने और बीमारियों से लड़ने में मदद करता है. विटामिन सी सर्दी- खांसी, जुकाम और कफ से भी राहत दिलाने में मदद कर सकता है.
  2. संतरा है एंटीऑक्सिडेंट्स का स्रोत: संतरे में पाये जाने वाले एंटीऑक्सिडेंट्स शरीर के रेडिकल्स जैसे नकारात्मक प्रभावों से बचाता है जो उम्र मानो थम सी गई महसूस होती है.
  3. पाचन को सुधारना: संतरा हमारी पाचन शक्ति को सुधारता है साथ ही पेट संबंधी कई समस्याओं को भी दूर करता है.
  4. वजन नियंत्रण: संतरा प्राकृतिक रूप से हाइड्रेटेड आहार होता है, जो शारीरिक वजन को नियंत्रण में मदद करता है.
  5. चिकित्सीय लाभ: संतरे के ताजगी और सेहतमंद गुणों की वजह से यह कई चिकित्सीय समस्याओं को रोकने और उन्हें नियंत्रित करने में मदद करता है, जैसे कि डायबिटीज, हृदय रोग और कैंसर आई.

संतरे को नियमित रूप से अपने आहार में शामिल करके आप अपने स्वास्थ्य को एक बड़ा सुधार कर सकते हैं और विभिन्न बीमारियों से स्वत: ही बच सकते हैं.

दुनिया में संतरा सबसे ज्यादा कहां उगाया जाता है?

हमारा देश भारत! संतरा का सबसे बड़ा उत्पादक देश है. भारत, विश्व का अग्रणी संतरे का उत्पादक है, और इसके बाद चीन, ब्राजील, स्पेन और मेक्सिको आते हैं.

भारत में नागपुर, अमरावती और नासिक जैसे क्षेत्रों में संतरे की खेती की जाती है, जो दुनिया भर में अद्वितीय स्वाद और गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध हैं.

अंत में-

संतरे हमारे लिए स्वास्थ्यप्रद जीवन और एक संतुलित आहार का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो सकारात्मक जीवन जीने में मदद करते हैं. आशा है आज इस पोस्ट के माध्यम से आपको संतरे की खेती के बारे में पर्याप्त जानकारी जरूर मिली होगी.

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