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एरोपोनिक तकनीक से केसर की खेती (Saffron Farming) से लाखों का मुनाफा | Vertical Saffron Cultivation from Aeroponic Technology

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केसर की खेती (Saffron Farming): केसर का नाम सुनते ही सबसे पहले ख्याल में कश्मीर की सर्द वादियां धूमने लगती है, और क्यों न घूमें? क्योंकि भारत में सबसे अधिक केसर कश्मीर के पाम्पोर में ही उगाया जाता है. केसर की खेती करने के लिए मूलरूप से नपे-तुले वातावरण की जरूरत होती है, यह वातावरण जम्मू और कश्मीर में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध होता है.

लगातार बढ़ती जनसँख्या के कारण केसर का उपभोग भी बढ़ा है जबकि केसर के उत्पादन में कोई ख़ास प्रगति नहीं हो पाई है. ऐसे में केसर का उत्पादन बढ़ाने के लिए ईरान ने एक नई तकनीक “एरोपोनिक तकनीक (aeroponic technology)” विकसित की है, जिसे अपनाकर कोई भी इच्छुक उद्यमी अथवा किसान सीमित जगह पर केसर की खेती को सफलता पूर्वक और बहुत ही आसानी से कर सकता है.

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केसर की खेती करने से पहले इच्छुक किसानों/उद्यमियों को केसर के बारे में कुछ बातों को जानना आवश्यक है. मसलन केसर क्रोकस (Crocus sativus) परिवार का पौधा है. इसका उपयोग मुख्य रूप से मसाले के रूप में किया जाता है, जो भारत सहित अन्य देशों में एक लोकप्रिय खाद्य पदार्थ है. साथ ही केसर के फूल का उपयोग सौन्दर्य प्रसाधनों व कॉस्मेटिक उत्पादों के निर्माण में भी किया जाता है, जो कि एक अच्छे मुनाफे को इंगित करता है.

इसके कई फायदों के कारण कई किसान और अब कई प्रतिभावान उद्यमी भी केसर की खेती करना शुरू कर दिया है. आधुनिक तकनीक “एरोपोनिक तकनीक/विधि” से केसर की खेती करना बहुत ही आसन है और जो इसकी खेती कर रहे हैं, वे बहुत ही अच्छा मुनाफा भी बना रहे हैं.

तो एरोपोनिक तकनीक से केसर की खेती करने के लिए इच्छुक उद्यमी को किन-किन घटकों, उपकरणों व सामग्री की आवश्यकता होगी? आइये विस्तार से जानते है-

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केसर की खेती के लिए लैब तैयार करना-

छोटी जगह अथवा सीमित स्थान में केसर की खेती करने के लिए इच्छुक उद्यमी को आधुनिक मशीनों व उपकरणों से युक्त एक लैब तैयार करने की आवश्यकता है. लैब बनाने व उच्च गुणवत्ता का केसर उगाने के लिए बहुत कम स्थान की आवश्यकता होती है. आइये जानते है लैब में केसर उगाने के लिए किन मशीनों व सामग्री की आवश्यकता होती है-

  1. बंद वातावरण जैसे गोदाम (कम से कम 10 X 10 वर्ग फुट)
  2. Polyurethane Foam Sheet अथवा थर्मोकोल शीट (स्थान को तापमान नियंत्रक बनाने के लिए)
  3. ह्यूमिडिफायर
  4. कूलर/एयर कंडिशनर
  5. chillier plant
  6. सफ़ेद रंग की LED लाइट के साथ रोशनी नियंत्रक रेगुलेटर
  7. आर्द्रता और तापमान मापक यंत्र
  8. लकड़ी से बनी ट्रे व अलमारियां (plastic trey भी उपयोग में ली जा सकती है)
  9. फूल आने के बाद बल्ब को मिट्टी में स्थानांतरित करने के लिए कृषि योग्य भूमि अथवा गमले

केसर की खेती के लिए लैब तैयार करने की विधि-

  • वांछित लैब तैयार करने के लिए वांछित स्थान यदि आपके घर पर है, तो वहां पर भी किया जा सकता है. लैब में लगने वाले सभी उपकरणों की जानकारी ऊपर बताई गई है.
  • सबसे पहले लैब का ढांचा तैयार हो जाने के बाद इसमें भारी उपकरण जैसे- चिल्लर प्लांट, एयर कंडिशनर, ह्यूमिडिफायर व बिजली आदि के साथ LED लाइट को इनस्टॉल करना होता है. इसके बाद पूरी लैब के बाहरी तापमान रोधी बनाने के लिए Polyurethane Foam Sheet अथवा थर्मोकोल शीट (कम से कम 01 इंच मोटाई) से कवर करना जरूरी होता है.
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  • केसर बल्ब (kesar seed) को रखने के लिए लकड़ी से बनी परात (ट्रे) का उपयोग (सबसे उपयुक्त) किया जाता है. ट्रे बनाने के लिए ऐसी लकड़ी (कम से कम आधा इंच मोटाई) का चयन करें, जो अधिक मात्रा में नमी को अपने अन्दर संजो/एकत्र कर सकती हो. मेरे अनुभव से आप आम पैकिंग (पेटी) लकड़ी का उपयोग करें, यह आसानी से और कम दामों में उपलब्ध हो जाती है.
  • ट्रे का साईज अधिकतम 3 X 2 फुट (लम्बाई X चौड़ाई) का हो तो उत्तम है, अथवा आप अपनी इच्छानुसार ट्रे का साइज निर्धारित कर सकते हैं तथा ट्रे के अनुपात में ही ट्रे स्टैंड (अमूमन लोहे के) का निर्माण निर्धारित किया जाता है.
  • सभी उपकरण स्थापित हो जाने के बाद ट्रे रखने के स्टैंड को स्थापित किया जाता है. केसर की खेती करने के लिए प्रत्येक ट्रे स्टैंड में कम से कम 03 और अधिकतम 05 मंजिला रैक बनाए जाते है. जिसमें हर एक मंजिल का माप उंचाई में कम से कम 15 से 18 इंच तक रखा जाता है. यह माप प्रत्येक ट्रे स्टैंड में बनाई जाने वाली मंजिल रैक के मध्य स्थापित किया जाना आवश्यक है.
  • यदि आप 02 या 02 से अधिक ट्रे स्टैंड स्थापित कर रहे हैं तो प्रत्येक स्टैंड के मध्य गलियारे का स्थान बनाना अनिवार्य है, जिससे केसर बल्ब अथवा केसर की फसल का निरीक्षण करने में कोई समस्या न आती हो.
  • 5 मंजिला रैक/अलमारियों सहित 100 वर्ग फुट के क्षेत्र में केसर उगाने अथवा saffron farming करने के लिए एक हॉल में 5 टन केसर बल्ब/बीज की जरूरत होती है.
  • सीमित स्थान पर केसर की खेती करने के लिए एरोपोनिक तकनीक का उपयोग किया जाता है. अब प्रश्न आता है कि ये एरोपोनिक तकनीक क्या होती है? आइये समझते हैं-

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एरोपोनिक तकनीक क्या है (Aeroponic Technology)

एरोपोनिक तकनीक: पोषक तत्व स्रोत के रूप में हवा और जलवाष्प धुंध/कोहरे का उपयोग कर पौधों उगाना और फसल उत्पादन करना एरोपोनिक प्रणाली है. इस तकनीक में मिट्टी का उपयोग बिल्कुल नहीं होता है, जिससे यह तकनीक पर्यावरण के सबसे अनुकूल बन जाती है.

हालांकि एरोपोनिक तकनीक अभी अपने प्रारंभिक चरण में है. जिसे जागरूक किसानों व उद्यमियों ने दृणता से अपनाना शुरू कर दिया है. एरोपोनिक तकनीक का मुख्य पहलू है कि बिना मिट्टी उपयोग के एक ऊर्ध्वाधर (vertical) प्रणाली में पौधों को उगाना है. एरोपोनिक तकनीक मूलरूप से vertical farming को बढ़ावा देती है.

एरोपोनिक विधि के माध्यम से पानी और सामान्य हवा के मिश्रण तैयार किये गए वातावरण में पौधों को उगाना व फसल तैयार करना होता है. एरोपोनिक विधि पारंपरिक खेती के तरीकों की तुलना में बहुत आधुनिक है, इस विधि से पौधों को कम नुकसान होने के साथ उच्च गुणवत्ता वाली उपज/फसल का उत्पादन किया जाता है.

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एरोपोनिक्स मुख्य रूप से छोटे स्थान अथवा सीमित स्थान पर सफल बागवानी अथवा सफल खेती करने की लिए विकसित किया गया है. एरोपोनिक तकनीक का मुख्य लाभ यह भी है कि इसमें मिट्टी का उपयोग नहीं होता है, जिससे संसाधनों का संरक्षण होता है और रखरखाव की लागत कम होती है.

एरोपोनिक तकनीक से क्या-क्या उगाया जा सकता है?

एरोपोनिक विधि से उन सब्जियों/फलों का उत्पादन करना उपयुक्त होता है, जिनकी जड़ें नमी और ऑक्सीजन जैसी स्थिति को दृणता से अपनाती हों, साथ ही नियंत्रित तापमान (Controlled temperature) आर्द्रता (Humidity) से युक्त कृत्रिम रूप से बनाए गए वातावरण में उगाई जा सकती हों. जैसे- केसर, आलू, बैंगन, टमाटर, पत्तेदार फसलें व लगभग सभी प्रकार की फसलें.

एरोपोनिक तकनीक से केसर को एक साल में कितनी बार उगाया जा सकता है?

एरोपोनिक तकनीक से केसर की फसल एक साल में एक बार ही ली जा सकती है. एक बार केसर बल्बों फूल देने के बाद पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, बल्बों को मृत होने से बचाने व पोषण परिपूर्ण बनाने के लिए उन्हें मिट्टी में रोपना जरूरी होता है.

केसर बल्ब/बीज का शोधन-

किसी भी विधि से केसर फार्मिंग (saffron seeds for farming) करने से पहले केसर बल्ब/बीज का शोधन जैसे- कीटाणुरहित करना, अवांछित गंदगी की सफाई, बीज पर उभरी अतिरिक्त परतों को हटाना व ख़राब बल्ब/बीजों की छटाई किया जाना प्राथमिक अनिवार्य चरण है.

सफाई, छटाई हो जाने बाद सबसे आखिरी चरण में केसर के बीजों को कवक नाशी व कीटाणु रहित बनाने के लिए कीटाणुनाशक घोल (fungicide solution) में कुछ समय/मिनटों के लिये डुबोया/भिगाया जाता है.

यह कीटाणुनाशक घोल (fungicide solution) बनाने के लिए 02 तरीके प्रचलित हैं-

  1. आर्गेनिक कीटाणुनाशक घोल
  2. केमिकल आधारित कीटाणुनाशक घोल

प्राकृतिक fungicide बनाने के लिए नीम तेल का उपयोग किया जाता है. वहीं केमिकल आधारित कीटाणुनाशक घोल बनाने के लिए Carbendazim fungicide और acaricide को 2 : 1 के अनुपात में मिलाकर तैयार किया जाता है.

इसके बाद saffron bulb को छायादार स्थान में तब तक सुखाया जाता है, जब तक kesar seeds की नमी हट नहीं जाती. यह प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद केसर बल्ब उगाये जाने के लिए तैयार हो जाता है.

केसर के बीज कहां से मिल सकते हैं?

व्यवसायिक स्तर पर केसर की खेती करने के लिए केसर बल्ब/saffron bulb कश्मीर स्थित पाम्पोर क्षेत्र के स्थानीय बाजार में आसानी से मिल सकता है. इसके अलावा इच्छुक उद्यमी/किसान ऑनलाइन indiamart.com से व पालमपुर में स्थित सीएसआईआर-हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान से भी saffron bulb की खरीद आसानी से कर सकता है.

बीज को अंकुरित करना-

खुले वातावरण में केसर के बीजों को अंकुरित होने के लिए मूलरूप से धुंधले मौसम के साथ लगभग 65 से 80% आर्द्रता से युक्त सर्द/ठंडे वातावरण की आवश्यकता होती है. केसर का पौधा 01 डिग्री सेंटीग्रेट से लेकर अधिकतम 12 डिग्री सेंटीग्रेट के तापमान में अच्छे से फलता-फूलता है.

एरोपोनिक विधि से केसर की खेती करने के लिए लैब के भीतर तैयार की गई लकड़ी ट्रे में केसर बल्ब को सुव्यवस्थित स्थापित कर ऐसा ही वातावरण बनाया जाता है, कि केसर के बल्ब/बीज को ऐसा महसूस हो कि अंकुरण का समय आ चुका है.

तापमान निर्धारण-

बीज को अंकुरित करने के लिए न्यूनतम 01 से 03 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान, 65 से 75% आर्द्रता से युक्त सर्द/ठंडे अंधेरे वातावरण में कम से कम 07 से 10 दिनों के लिए रखना होता है. ऐसा करने से केसर के बल्ब गर्मी की नींद से जाग जाते हैं और बढ़ने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.

इसके बाद जब बल्ब से अंकुरण हो जाता है तो तापमान को 5 से 8 डिग्री सेंटीग्रेट व आर्द्रता 85% के साथ हल्की रौशनी 800 ल्यूक (रौशनी का पैमाना) की आवश्यकता होती है.

केसर की सफल खेती करने के लिए एक केसर बल्ब का औसत भार कितना होना चाहिए?

यदि आप केसर की खेती में सफलता आसानी से प्राप्त करना चाहते हैं तो इसके लिए सबसे पहला चरण होता है स्वस्थ्य केसर बल्ब/बीज का चुनाव करना. औसतन 15 ग्राम के समकक्ष अथवा इससे ऊपर वाले भार वाले केसर बल्ब केसर की सफल खेती के लिए सबसे उपयुक्त माने जाते हैं.

केसर की खेती पर आने वाली लागत-

ऐरोपोनिक तकनीक से केसर की खेती करने के लिए पहले वर्ष लागत 05 से 08 लाख रूपये तक आ सकती है. चूंकि पहले वर्ष में लैब तैयार करना, आवश्यक मशीनों की खरीद व जरूरी संसाधन जुटाने जरूरी होते हैं.

इसके अगले साल इच्छुक उद्यमी को केवल आवश्यकतानुसार केसर बल्ब खरीद पर ही व्यय करना होता है. वहीं यदि इच्छुक उद्यमी खुले वातावरण/खेत में केसर की खेती करने का इच्छुक है, तो इसके लिए उपयुक्त saffron cultivation भूमि का चयन कर केवल खेत तैयारी, केसर बीज और कीटाणुनाशक आदि पर ही व्यय लागत लगेगी.

केसर की उन्नत किस्में-

भारत में मुख्य रूप से केसर की 02 उन्नत किस्मों की ही खेती की जाती है. जो इस प्रकार हैं-

  1. कश्मीरी केसर या मोगरा केसर
  2. अमेरिकन केसर

इन दोनों किस्मों में से कश्मीरी केसर जिसे मोगरा केसर के नाम से जाना जाता है, की कीमत मौजूदा बाजार में लगभग 2.50 से लेकर 05 लाख रूपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकता/बेचा जाता है. वहीं अमेरिकन केसर मौजूदा बाजार में लगभग 50 से लेकर 85 हजार रूपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकता/बेचा जाता है

केसर के पौधों में लगने वाले रोग-

अमूमन एरोपोनिक तकनीक से केसर की खेती करने पर किसी भी प्रकार रोग केसर के पौधे पर देखने को नहीं मिलते हैं, क्योंकि एरोपोनिक विधि से saffron farming एक बंद कमरे में की जाती है. लेकिन यदि इच्छुक उद्यमी खुले वातावरण/खेत में केसर की खेती कर रहा है अथवा चाहता है, तो उसे मुख्य रूप से 02 रोग दिखाई दे सकते है-

  1. केसर बीज/बल्ब का सड़ना
  2. मकड़ी जाल की समस्या

केसर की खेती एक निशिचत तापमान आधारित कृषि है, जो बिना उसके अनुकूल तापमान के पनप नहीं सकती, इसलिए यदि केसर बल्ब सड़ रहे हैं तो इसमें 03 संभावनाएं हो सकती हैं-

  1. फसल को अधिक मात्रा में जल एकत्र हो रहा है तो जल निकासी का प्रबंधन करना अनिवार्य है.
  2. बल्ब रोगाणुओं से संक्रमित हो चुका है, कवकनाशी का छिड़काव अनिवार्य है.
  3. वातावरण का तापमान बढ़ने (लगभग 28 से 45 डिग्री सेंटीग्रेट) पर भी केसर के बीज सूख अथवा सड़ने लगते है. ऐसी स्थिति में केसर बल्ब को जमीन से निकाल कर अनूकूल तापमान वाले वातावरण में स्थानांतरित करना अनिवार्य है.

अमूमन खुले वातावरण/खेत में केसर की खेती करने पर मकड़ी जाल जैसी समस्या सबसे अधिक देखने में मिलती है. इसके उपचार के लिये सबसे कारगर उपचार है कि केसर के प्रत्येक पौधे/बल्ब पर नीम तेल को पानी में मिलाकर छिड़काव किया जाए.

ऐरोफोनिक विधि से केसर की खेती करने के लिए प्रशिक्षण कहां से लें?

हालांकि एरोपोनिक तकनीक अभी भारत में नई है, जो अभी बहुत ही सीमित लोगों के द्वारा ही अपनाई गई. लेकिन इस तकनीक का आने वाला भविष्य बहुत उज्जवल है. यदि आप एरोपोनिक तकनीक से केसर की खेती अथवा केसर उगाने के संबंध में जानकारी व प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए संस्थान व विषय विशेषज्ञ से सम्पर्क कर सकते हैं-

  1. पालमपुर में स्थित Council of Scientific and Industrial Research (CSIR)- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा केसर की व्यवसायिक खेती के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है.
  2.  विषय विशेषज्ञ द्वारा भी प्रशिक्षण प्राप्त किया जा सकता है.

केसर के उत्पादक राज्य व केसर का स्थानीय नाम-

भारत के कश्मीर राज्य के पुलवामा के पम्पोर इलाके में 90 फीसदी केसर उत्पादन से यह भारत में पहले स्थान पर सुशोभित है. इसके अलावा जम्मू और हिमाचल प्रदेश भी दूसरे स्थान पर केसर उत्पादक राज्य हैं. इसके अलावा व्यवसायिक तौर पर केसर की खेती उत्तर प्रदेश, बिहार व मध्य प्रदेश में भी की जा रही है.

हिंदी में केसर को “केसर”, कश्मीरी में केसर को “कोंग/कुंग”, बंगाली में केसर को “ज़ाफरान”, पंजाबी में भी केसर को “ज़ाफरान”, गुजराती में केसर को “केशर”, उर्दू में केसर को “ज़फरान”, संस्कृत में केसर को “असरा, अरुणा, असरिका, कुनकुमा” आदि देशी नामों से जाना जाता हैं. साथ ही अंग्रेजी में केसर को saffron व कहीं-कहीं पर jaffron भी कहा जाता है.

केसर की हार्वेस्टिंग-

03 महीने में पूरी तरह से हार्वेस्टिंग के लिए केसर की खेती तैयार हो जाती है. केसर के फूलों से केसर निकालना/हार्वेस्ट करना नाज़ुक और मेहनत से भरा काम है. केसर की हार्वेस्टिंग करने से पूर्व केसर के फूल को समझना जरूरी है. केसर के फूल में मुख्य 03 भाग होते है-

  1. फूल की पंखुडियां (saffron leaves/petals)
  2. केसर (स्टिग्मा – Stigma) जो मूलरूप से केसर (लाल रंग का- मसाले के रूप में उपयोग) है
  3. पुंकेसर (stamens) पीले रंग का है

केसर की हार्वेस्टिंग एक-एककर हाथों से की जाती है. हार्वेस्टिंग के दौरान तीनों भागों को एक-दूसरे से अलग कर अलग-अलग पात्रों में संरक्षित किया जाता है क्योंकि केसर के फूल से निकले हर भाग की मांग होती है.

हार्वेस्टिंग के बाद केसर को हल्की धूप अथवा छायादार स्थान पर सुखा जाता है. सूख जाने के बाद केसर जो कि एक मसाले के उपयोग में लिया जाने वाला उत्पाद है, बिक्री के लिए तैयार हो जाता है.

केसर के फूलों का कब हार्वेस्ट करना चाहिए?

उच्च गुणवत्ता का केसर उत्पादन करने के लिए केसर के फूलों को खिलने के अगले दिन ही हार्वेस्ट करना उचित होता है.

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केसर के उपयोग व लाभ-

  • केसर सालों साल रखे रहने पर भी कभी भी खराब नहीं होता है.
  • दूध और मिठाई में केसर का उपयोग स्वाद और रंग के रूप में किया जाता है.
  • मुगलई व्यंजनों में, उन्हें स्वाद और मसाला एजेंट के रूप में उपयोग किया जाता है.
  • आयुर्वेद में भी केसर एक महात्वपूर्ण औषधि है. गठिया, बांझपन, यकृत वृद्धि व बुखार आदि का इलाज के लिए केसर का उपयोग किया जाता है.
  • परफ्यूम, इत्र के अलावा सौंदर्य प्रसाधनों (कॉस्मेटिक सामग्री, saffron powder) के निर्माण के लिए केसर एक आम लेकिन सबसे खास सामग्री है.
  • वास्तविक केसर कभी भी पूरी तरह से घुलनशील नहीं होता है. जिस कारण इसका नकल तैयार करना बहुत कठिन होता है.

केसर बीज/बल्ब को कैसे बढाया जा सकता है?

हार्वेस्टिंग के बाद केसर के बल्ब में पोषक तत्वों की पूर्ती करने के लिए बल्बों को मिट्टी में रोपना करना जरूरी है. मिट्टी में रोपने से जहां एक तरफ बल्ब स्वस्थ्य बनता है, वहीं दूसरी ओर मदर बल्ब से कई अन्य छोटे-छोटे बल्ब भी विकसित होते हैं. तो यहां पर प्रश्न यह है कि केसर बल्ब की अच्छी ग्रोथ व अन्य केसर बल्ब विकसित करने के लिए किस प्रकार की मिट्टी का चयन किया जाए?

केसर उगाने (saffron garden) के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक मिट्टी है. अमूमन केसर दोमट, रेतीली और चूने वाली मिट्टी पर भी उगाया जा सकता है लेकिन बजरी वाली मिट्टी केसर की खेती के लिए सबसे उत्तम होती है. साथ ही केसर अम्लीय मिट्टी में भी अच्छे से उगता है. केसर उगाने के लिए मिट्टी का pH 5.5 से 8.5 के आस-पास होने पर केसर अच्छी तरह से पनपता है.

यदि आपके पास केसर उगाने के लिए वांछित भूमि अथवा स्थान नहीं है तो आप वांछित मिट्टी तैयार कर इसे गमले अथवा ग्रो बैग में भी उगा सकते हैं. केसर की खेती में गोबर की खाद, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की विशेष भूमिका होती है.

साथ ही केसर उगाने के लिए तापमान अधिकतम 28 डिग्री सेंटीग्रेट से ऊपर नहीं होना चाहिए. परन्तु फसल लेने के लिए तापमान 03 से 17 डिग्री सेंटीग्रेट व आर्द्रता 65 से 90% की आवश्यकता होती है.

बीज लगाने का सही समय और तरीका-

केसर के बीज/केसर बल्ब के रोपण की विधि बहुत आसन है. प्रत्येक केसर बल्ब को मिट्टी में 3 इंच नीचे दबा कर रोपा जाता है. चूंकि सितम्बर से अक्टूबर से केसर बल्ब में कलियों व फूल का आना शुरू हो जाता है, साथ ही केसर की खेती मात्र 03 महीने की ही होती है.

इसलिए यदि आप एरोपोनिक तकनीक से केसर की खेती और केसर बल्ब की तादात बढ़ाना चाहते है तो केसर बीज का रोपण फूल आने के 06 महीने पहले अथवा हार्वेस्टिंग के एक दिन बाद करना उचित होता है.

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केसर की खेती में मुनाफा-

केसर की खेती (saffron farming) में केसर के फूलों से मुख्य 03 प्रकार से मुनाफा बनाया जाता है-

  1. फूल की पंखुड़ियों (saffron petals) से (कॉस्मेटिक क्षेत्र में मांग)
  2. केसर (stigma) से (मसाले के रूप में उपयोग व कॉस्मेटिक के कमर्शियल क्षेत्र में भी मांग)
  3. पुंकेसर (stamens) से (कॉस्मेटिक क्षेत्र में मांग)

मौजूदा मार्केट में केसर का भाव (kesar value) क्या है इसकी जानकारी के लिए आप गूगल पर “today saffron price” से सर्च कर सकते हैं.

FAQ.

तैयार केसर को कहां पर बेच सकते हैं?

उच्च गुणवत्ता वाले असली केसर की डिमांड सभी जगह पर रहती है. आप अपने खेत से केसर पैदा कर (Saffron Production) अच्छी कीमतों पर बेच सकते हैं। इसके अलावा आप इसे ऑनलाइन भी बेच कर सकते हैं।

केसर की कीमत अथवा केसर का मूल्य कितना है?

मौजूदा भारतीय बाजार में उच्च गुणवत्ता वाले केसर का भाव अथवा केसर की कीमत ढाई लाख से पांच लाख रुपए प्रति किलो के मध्य देखने को मिलती है.

केसर के फूल से कितने तरीकों से मुनाफा बनाया जाता है?

केसर के फूलों से 03 प्रकार से मुनाफा बनाया जाता है-

1. फूल की पंखुड़ियों से
2. केसर (stigma) से
3. पुंकेसर (stamens) से

केसर के फूल कौन से महीने में आते हैं?

केसर की खेती तहत केसर के फूल सितम्बर महीने से आना शुरू हो जाते हैं, यह प्रक्रिया अक्टूबर महीने तक चल सकती है.

केसर के एक फूल में कितने केसर के धागे होते है?

एक केसर के फूल में केसर के 03 धागे (saffron threads) होते हैं.

आधुनिक तकनीक (ऐरोफोनिक तकनीक) से केसर की खेती करने में कितना समय लगता है?

अमूमन किसी भी विधि से केसर की खेती मूलरूप से 03 महीनों की ही होती है. ऐरोफोनिक तकनीक से भी केसर की खेती करने में 03 महीनों का समय लगता है.

उत्तम गुणवत्ता के केसर का मूल्य क्या है?

कश्मीरी केसर अथवा मोगरा केसर मौजूदा मार्केट में लगभग 2.50 से लेकर 05 लाख रूपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकता/बेचा जाता है. वहीं अमेरिकन केसर मौजूदा बाजार में लगभग 50 से लेकर 85 हजार रूपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकता/बेचा जाता है.

भारत में केसर की खेती सबसे ज्यादा कहां होती है?

भारत में कश्मीर के पाम्पोर क्षेत्र में केसर की खेती (भारत में उत्पादन का 90%) सबसे ज्यादा की जाती है. पाम्पोर को केसर उत्पादन के लिए G.I. Tag (Global Indexing Tag) भी मिला है.

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अंत में-

स्वास्थ्य की दृष्टी से केसर का सेवन करना (खाना) हमारे शरीर को स्वस्थ्य, सुन्दर और रोगमुक्त करने के साथ बेहतर बनाता है, प्राचीन काल से ही हमारे पूर्वजो द्वारा इसका सेवन किया गया है जो आज की पीढ़ी के लिए भी एक महत्वपूर्ण घटक है, साथ भारत सहित पूरी दुनिया केसर को उसके गुणों के कारण उपयोग में ले रही है.

हमारा उद्देश्य सभी इच्छुक व्यवसायीयों, उद्यमियों, किसानों और खेती/कृषि प्रेमियों को बेहतर से बेहतर जानकारी प्रदान करना है, जिससे वे अपनी कृषि योग्यताओं को बेहतर से बेहतरीन बना सके और अपने द्वारा तैयार की गई ऑर्गेनिक फसलें और औषधियों से लाभ उठा सकें.

आशा है आपको इस लेख “एरोपोनिक तकनीक से केसर की खेती (Saffron Farming) से” केसर के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी जरूर मिली होगी, साथ ही… यदि कुछ छूट गया हो या कुछ पूछना चाहते हों तो कृपया comment box में जरूर लिखें. तब तक के लिए-

“शुभकामनाएं आपके कामयाब और सफल कृषि के लिए”

 धन्यवाद!

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1 टिप्पणी

  1. नमस्ते सर, आपका आर्टिकल बहुत अच्छा पढ़कर mja a gya , अच्छी इंफॉर्मेशन देने के लिए धन्यवाद

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