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किचन गार्डन में सफल चुकंदर की खेती | Beetroots Farming in Kitchen Gardening

चुकंदर की खेती, चुकंदर बोने की विधि, चुकंदर के फायदे, Beetroot cultivation time, चुकंदर की उन्नत किस्में (Improved Varieties Of Beetroots), चुकंदर में लगने वाले रोग व समाधान, चुकंदर को हार्वेस्ट करना-

चुकंदर में कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, मैंगनीज, विटामिन-सी, बी-कॉम्पलेक्स, आयरन तथा फास्फोरस जैसे तत्त्वों का समावेश होता है. इसके अलावा चुकंदर में कई औषधीय गुण होने के साथ-साथ खून को बढ़ाने व साफ करने के गुण भी होते है. लेकिन मौजूदा बाजार में हमें जो चुकंदर मिलता है, उसे कई तरह के केमिकल आधारित फर्टिलाईज़र का उपयोग कर उगाया जाता है, जिससे चुकंदर की गुणवता में कई कमियां आ जाती हैं.

यदि आप बागवानी प्रेमी हैं और आर्गेनिक/प्राकृतिक रूप से उगे चुकंदर का सेवन करना चाहते हैं तो आज इस पोस्ट के माध्यम से हम आपके साथ किचन गार्डनिंग/टेरेस गार्डनिंग के तहत छोटे स्तर पर ग्रो बैग या गमले में चुकंदर की खेती कैसे करें (chukandar ki kheti kaise kare) की विस्तृत जानकारी साझा करने जा रहे हैं.

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तो चलिए शुरू करते हैं, सबसे पहले आपको चुकंदर के फायदों से अवगत कराते हैं-

चुकंदर के फायदे (Benefits of Beetroots)-

चुकंदर सिर्फ एक सलाद में उपयोग की जाने वाली सब्जी मात्र नहीं है बल्कि चुकंदर में बहुत सारे औषधीय गुणों का भंडार भी होता है. हममें से कई लोगों को चुकंदर के औषधीय गुणों की बहुत ही कम या आंशिक जानकारी ही होती है. जिसकी वजह से हम चुकंदर को केवल सलाद के रूप में ही प्रयोग करते हैं अथवा डाक्टर के कहने पर ही जूस आदि की तरह उपयोग करते हैं. 

  • चुकंदर का सेवन करने से खून की कमी, एनीमिया, हृदय रोग, कैंसर, बवासीर, पित्ताशय विकार और गुर्दा सम्बन्धी विकारों को बड़ी सरलता से दूर किया जा सकता है. 
  • इसके अलावा चुकंदर की पातियां पशु चारा बनाने के काम में बहुत उपयोगी मानी जाती हैं.
  • चुकंदर में आयरन की भरपूर मात्रा होती है, साथ ही चुकंदर का सेवन सलाद, जूस, सब्ज़ी, आचार व हलवा बनाकर किया जा सकता है.
  • आयुर्वेद में भी चुकंदर (Beetroot in Ayurveda) किसी औषधी से कम नहीं, चुकंदर से कैंसर जैसी घातक बीमारियों का उपचार भी संभव है.
  • चुकंदर का सेवन निरंतर करने से यह शरीर के रक्तचाप को भी संतुलित कर सकता है, चुकंदर में नाइट्रेट्स रसायन होता है, जो बढ़े हुए ब्लड प्रेशर को कम करने का काम करता है.
  • चुकंदर का जूस (Chukandar Juice Benefits) पीलिया, हेपेटाइटिस, उल्टी के उपचार में भी लाभदायक है. साथ ही रोज जूस पीने से दांत और हड्डियां दोनों मजबूत भी बनते हैं.

चुकंदर की खेती बुवाई का समय-

अमूमन चुकंदर एक ऐसी सब्जी है जो साल के 12 महीनों में बाजार में देखने की आसानी से मिलती है. चुकंदर की इस उपलब्धता का मुख्य कारण है चुकंदर की बुवाई जिसे बहुत ही बड़े स्तर पर किया जाता है.

भारत के सर्द मौसम में चुकंदर की बुवाई की जाती है क्योंकि चुकंदर की खेती के लिए अक्टूबर का महीना, जब तापमान 18-21 डिग्री सेल्सियस के बीच बना रहता है, आदर्श माना जाता है.

वैज्ञानिक शोध में पाया कि चुकंदर की खेती ऊसर/बंजर भूमि में भी की जा सकती है, ऊसर/बंजर भूमि में चुकंदर का उत्पादन करने से भूमि की गुणवत्ता में भी सुधार होता है.

चुकंदर की उन्नत किस्में (Improved Varieties Of Beetroots)

किचन गार्डनिंग व टेरेस गार्डनिंग (छत पर बागवानी) के तहत चुकंदर की उन्नत किस्मों को बड़े स्तर की खेती के लिए उपयोग (खेत आदि) में लिया जाता है. हालांकि इन किस्मों को गमले या ग्रो बैग में भी लगाया जा सकता है और अच्छी उपज भी ली जा सकती है, भारत में किसान ज्यादातर उन्नत चुकंदर की किस्मों को ही व्यवसायिक कृषि (commercial agriculture) में लेते है. ये किस्में इस प्रकार हैं-

  1. डेट्रॉइट डार्क रेड- (गोल और गाढ़े लाल रंग),
  2. क्रिमसन ग्लोब (चुकंदर चपटा और गहरे लाल रंग का),
  3. अर्ली वंडर (हरे पत्तों और लाल डंडियों से भरा),
  4. मिस्त्र की क्रॉस्बी (फलों का रंग गहरा लाल से बैंगनी),
  5. रूबी रानी (गहरे लाल रंग का, वज़न 100 से 125 ग्राम तक),
  6. रोमनस्काया और
  7. एम.एस.एच.–102

चुकंदर उगाने के लिए मिट्टी तैयार करना (Prepared Soil Media for Beetroot Cultivation)-

व्यवसायिक तौर पर चुकंदर की खेती (commercial beetroot cultivation) के लिए अच्छी मिट्टी बलुई दोमट मानी जाती है, लेकिन किचन गार्डनिंग के तहत उच्च स्तर की बागवानी करने में पौधों की मिट्टी तैयार करना बेहद आसान है. आमतौर पर हममें से कई लोग इस चीज पर कोई खास ध्यान नहीं देते है, बस पौधों को सीधे गमलो की मिट्टी में लगा देते हैं और पानी के साथ कुछ बेसिक खाद आदि देकर अपना पीछा छुड़ा लेते हैं, 

इसके बाद इंतजार करते हैं कि हमारा लगाया गया पौधा जल्द से जल्द बड़ा होकर अच्छे फल व फूल देना शुरू कर दे, लेकिन जब पौधा अच्छे फल व फूल नहीं देता तो कहते हैं कि वो पौधा ही ख़राब है. समस्या यह नहीं है कि पौधा ख़राब है, बल्कि मुख्य समस्या यह है कि हमें सही जानकारी नहीं है.

किचन गार्डनिंग के तहत किसी भी तरह से पौधे को उगाने या ग्रो करने के लिए हमें जिस मिट्टी अथवा soil media की जरूरत होती है, उसे आसानी से घर पर बनाया जा सकता है. चुकंदर के पौधे (Beetroot plant) को उगाने के लिए हमें जिस तरह की मिट्टी आवश्यकता होती है उसे बनाने के लिए हमें इन चीजों की जरूरत होती है- 

  1. साधारण उपजाऊ गार्डन मिट्टी – 03 भाग
  2. गोबर/वर्मी कम्पोस्ट खाद– 03 भाग
  3. कोकोपीट- 03 भाग (वैकल्पिक)
  4. नदी की रेत/मिट्टी – 02 भाग
  5. नीम खली- 300  ग्राम
  6. सरसों खली- 400 ग्राम
  7. बोन मील- 500 ग्राम

नोट- उपरोक्त बताई गई मात्रा 12 X 12 X 12 से 15 X 15 X 15 इंच के गमले या ग्रो बैग के अनुसार ली गई है.

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सुझाव-

  • किचन गार्डनिंग में विशेष तौर पर कीटाणु नाशक के रूप में नीम खली ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर का उपयोग किया जाता है. आप इसके स्थान पर केमिकल आधारित फर्टिलाइजर का उपयोग भी कर सकते हैं. लेकिन प्रश्न यह है कि आप आर्गेनिक चुकंदर खाना चाहते हैं या केमिकल आधारित.
  • उपरोक्त सभी बताये गए घटकों को मात्रा अनुसार आपस में मिलकर वांछित मिट्टी तैयार कर लेनी है. इसके बाद ही मिट्टी में अंकुरित चुकंदर को गमलों या ग्रो बैग में रोपित/लगाया जाता है.
  • चुकंदर के पौधे को पनपने के लिए मिटटी का pH मान 06 से 07 के बीच होना जरूरी होता है और रोपने के बाद गमलों या ग्रो बैग पर सीधी धूप का पड़ना जरूरी है.

चुकंदर बोने की विधि (Beetroots Cultivation Process)-

गमलों या ग्रो बैग में चुकंदर रोपण विधि बहुत ही आसान है और किसी के भी द्वारा इसे सम्पन्न किया जा सकता है-

  • सबसे पहले निर्धारित गमले या ग्रो बैग में लगभग 80% तैयार soil media (मिट्टी) को भर लिया जाता है. इसके बाद मिट्टी से भरे गमले या ग्रो बैग में चुकंदर के बीज (beetroot seeds) को लगभग 01 इंच अन्दर रोप (दबा) दिया जाता है.
  • रोपने के बाद चुकंदर को आधे इंच मिटटी से जरूर ढक दें क्योंकि चुकंदर के पौधों के लिए यह प्रक्रिया जरूरी है. मिटटी से ढक देने के बाद गमले या ग्रो बैग में अच्छे से पानी देना होता है. पहली बार में पानी इतना दें जिससे गमले की मिट्टी पूरी तरह से भीग जाए. इसके बाद पानी आपको तब ही देना है जब गमले या ग्रो बैग की मिटटी सूखी दिखाई दे.
  • लगभग 15 दिनों के बाद चुकंदर के पौधे मिटटी के ऊपर अच्छे से निकल चुके होंगे, इसके बाद अंकुरित हो चुके पौधों की तली में शेष 20% मिटटी भर दें और पानी दे दें.
  • इतना करने के बाद आपको पानी आपको इतना ही देना है जिसे मिटटी में नमी बनी रहे, साथ ही पौधों पर होने वाले रोग आदि पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है.

सुझाव-

  • यदि आप 12 इंच के गमले या ग्रो बैग में चुकंदर रोप रहे हैं तो अधिक से अधिक 5 से 7 चुकंदर ही रोपे. 15 इंच के गमले या ग्रो बैग में तो अधिक से अधिक 10 चुकंदर बीज ही रोपे जा सकते हैं. यदि इससे ज्यादा चुकंदर रोपते हैं तो हार्वेस्टिंग के समय आपको छोटे-छोटे चुकंदर ही प्राप्त होंगे, जिससे आपकी की गई मेहनत का परिणाम सुखद नहीं प्राप्त हो सकेगा.
  • किचन गार्डनिंग या टेरेस गार्डनिंग के तहत छोटे स्तर पर ग्रो बैग या गमले में चुकंदर की पैदावार करने के लिए उत्तम गुणवत्ता के चुकंदर बीज का ही चयन करें.

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ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर और रोगाणुनाशक (Organic Fertilizer)-

एक बेहतरीन ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर और रोगाणुनाशक जिसका निर्माण हम अपने घर पर आसानी से और कम कीमत पर तैयार कर सकते हैं. इसका इस्तेमाल करने से आपके चुकंदर के पौधों की ग्रोथ बहुत अच्छी तरह से होती है. घर पर ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर बनाने के लिए सिर्फ एक चीज की जरूरत होती है और वह है- नीम खली, नीम का तेल और सरसों की खली.

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02 लीटर पानी में करीब 07 से 10 ml नीम के तेल को मिलाकर पौधे व उसकी पत्तियों पर स्प्रे करना होता है, आप 20 दिनों के अंतराल पर इस ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर का उपयोग कर सकते हैं. नीम खली को आप सीधे पौधे की जड़ में गुड़ाई कर दे सकते हैं. 

साथ ही 20 से 30 ग्राम सरसों की खली को 02 लीटर पानी में 24 घंटे भिगोकर जो मिश्रण तैयार होता है उसे सीधे या छानकर चुकंदर के पौधे को 15 दिन में एक बार ही देना होता है. इसे देने से चुकंदर के पौधे को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं और जिससे चुकंदर का कंद बड़ा और स्वादिष्ट भी बनता है.

चुकंदर के पौधे में लगने वाले रोग (Pests Control in Beetroot Farming)-

मौलिक तौर पर अधिकांश सब्जियों के पौधों पर पौधों को नुकसान पहुचाने वाले कीटों का आक्रमण होता ही होता है, अगर समय रहते इन कीटों का समुचित समाधान/निपटान नहीं किया जाए तो ये कीट पौधे का सम्पूर्ण सर्वनाश करने में भी सक्षम होते हैं.

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चुकंदर के पौधे पर भी पौधे को क्षति पहुचाने वाले कीट एक बार जरूर आक्रमण करते हैं. अमूमन चुकंदर के पौधे में कीटों की वजह से कुछ रोग देखने को मिलते हैं. जैसे-

  1. रेड स्पाइडर,
  2. एफिड्स,
  3. फ्लाई बीटल और
  4. लीफ खाने

ये कुछ रोग हैं जो किचन गार्डनिंग या टेरेस गार्डनिंग के तहत चुकंदर के पौधे में ख़ास तौर पर देखने को मिलते हैं. इसका समाधान यह है कि…..

  • अगर चुकंदर के पौधे की पत्तियां सफ़ेद हो रही हैं साथ ही यदि पौधे के स्प्राउट काले होकर स्वत: ही गिर रहे है या पौधे पर मकड़ी जाला लगा दिख रहा है तो समझ लीजिए कि आपके चुकंदर के पौधे पर कीटों का आक्रमण हुआ है, इनसे निजात पाने के लिए आप पौधे पर कीटनाशक (ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर) का हर सप्ताह में एक बार अच्छे से जरूर करें.
  • ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर (कीटनाशक) बनाने की विधि ऊपर बताई जा चुकी है. इसके साथ ही जब आपको लगे कि पौधा कीट मुक्त हो चुका है तो ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर (कीटनाशक) का उपयोग 10 दिन में एक बार ही करें.
  • वहीं यदि पौधे की पत्तियों का रंग समय से पहले पीला हो जा रहा है व पौधे में अच्छी ग्रोथ नहीं दिख रही है तो समझ जाइए कि ओवर वाटरिंग की वजह से पौधे की मिटटी में पोषक तत्वों की कमी हो गयी है, पौधे की मिट्टी में हल्की गुड़ाई के बाद वर्मी कम्पोस्ट खाद, स्टोन पाउडर के साथ नीम खली मिलाकर दें.
  • इसके साथ ही यदि चुकंदर का पौधा बढ़ते-बढ़ते मुरझा जा रहा है तो समझ जाइए कि पौधे के गमले का पानी निकासी छिद्र (ड्रेनेज होल) बंद हो गया है जिससे गमले में अतिरिक्त पानी ठहर रहा है. इसका तुरंत निपटान/समाधान किया जाना बेहद जरूरी है अन्यथा पौधे की जड़ें और संभावित चुकंदर पानी में गल जाएंगी और पौधा मर जाएगा.

हार्वेस्ट करना-

यदि आपने सब कुछ चरणबद्ध तरीके से किया है तो लगभग 60 से 75 दिनों में आपके चुकंदर हार्वेस्ट/कटाई के लिए लगभग तैयार हो चुके होंगे, आप चुकंदर की खेप की हार्वेस्टिन्ग/कटाई करना शुरू कर सकते हैं। किचन गार्डनिंग या टेरेस गार्डनिंग के तहत तैयार चुकंदर को एक बार में ही हार्वेस्ट किया जाता है.

पूरी तरह से ऑर्गेनिक प्रक्रिया द्वारा उगाए गए चुकंदर, खाने में बेहद स्वादिस्ट होने के साथ-साथ पर्याप्त पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, यदि आप healthy food खाने के शौकीन हैं तो ये ऑर्गेनिक चुकंदर आपको बहुत पसंद आएंगे. 

FAQ.

Q. चुकंदर की खेती में कौन कौन सी खाद डालें?

Ans: किचन गार्डनिंग या टेरेस गार्डनिंग के तहत चुकंदर की सफल खेती करने के लिए साधारण उपजाऊ गार्डन मिट्टी में गोबर/वर्मी कम्पोस्ट खाद, नदी की रेत/मिट्टी, नीम खली, सरसों खली, स्टोन पाउडर और बोन मील आदि को मिलाकर तैयार soil media में आसानी से की जा सकती है.

चूँकि चुकंदर एक कंद वाली फसल है इसलिए चुकंदर की खेती में गोबर/वर्मी कम्पोस्ट खाद के साथ कैल्शियम और फास्फोरस जैसे घटक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है.

Q. चुकंदर की खेती कितने महीने की होती है?

Ans: अमूमन चुकंदर की फसल 60 से 70 दिन में पूरी तरह से परिपक्व हो जाती है. परिपक्वता का समय चुकंदर की किस्मों पर भी निर्भर करता है.

Q. चुकंदर की बुवाई कौन से महीने में होती है?

Ans: अक्टूबर का महिना व नवम्बर का महिना जब तापमान 18 से 22 डिग्री सेंटीग्रेट होता है, चुकंदर बुवाई के लिए सबसे उत्तम माना जाता है.

Q. चुकंदर की अच्छी पैदावार के लिए क्या करें?

Ans: गमले या ग्रो बैग में चुकंदर की अच्छी पैदावार के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटक है मिट्टी (soil media) का चुनाव करना. इसके बाद पानी की संतुलित मात्रा और रोग आदि पर नियंत्रण.

Q. चुकंदर की जैविक खेती कैसे करें?

Ans: चुकंदर की जैविक खेती की पूरी जानकारी के लिए पोस्ट को पूरा पढ़ें.

अंत में-

स्वास्थ्य की दृष्टी से केमिकल रहित सब्जियां खाना हमारे शरीर को हमेशा बेहतर बनाता है और किचन गार्डनिंग व टेरेस गार्डनिंग के तहत चुकंदर को तैयार करना भी थोड़ी देख-रेख के बाद आसानी से हो जाता है. यदि आप चाहते/चाहती हैं कि आप भी ऑर्गेनिक सब्जियों का लुफ्त उठा पाएं तो चुकंदर को अपने किचन गार्डेन या टेरेस (छत) गार्डेन में जरूर उगाएं.

हमारा उद्देश्य सभी किचन गार्डनिंग व टेरेस गार्डनिंग (बागवानी) प्रेमियों को बेहतर से बेहतर जानकारी प्रदान करना है, जिससे वे अपनी बागवानी योग्यताओं को बेहतर से बेहतरीन बना सके और अपने द्वारा तैयार की गई ऑर्गेनिक सब्जियों से लाभ उठा सकें.

आशा है आपको इस लेख ‘किचन गार्डेन में सफल चुकंदर की खेती कैसे करें’ से घरेलू बागवानी तहत चुकंदर की खेती के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी जरूर मिली होगी, यदि आप Beetroot cultivation के बारे में और भी जानना चाहते है तो हमारे Telegram चैनल से जुड़ें. साथ ही यदि कुछ छूट गया हो तो कृपया comment box में जरूर लिखें. लेख अच्छा लगा हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ share करना बिल्कुल न भूलें. अभी तक के लिए इतना ही—-

“शुभकामनाएं! आपकी कामयाब और सफल बागवानी के लिए”

धन्यवाद!

जय हिंद! जय भारत!

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