Agricultureभारत में पान की खेती (Piper Betel Farming)

भारत में पान की खेती (Piper Betel Farming)

पान की खेती (Piper Betel Farming): भारतीय संस्कृति एवं धार्मिक रीति रिवाजों में पान का सबसे गहरा सम्बन्ध है. शिवपुराण में अनेक बार ताम्बूल और पुंगीफल (पान का संस्कृत नाम) का उल्लेख देखने को मिलता है. वात्सायन के कामसूत्र व रघुवंश आदि ग्रन्थों में भी ताम्बूल शब्द का प्रयोग किया गया है.

पान का पौधा मूलरूप से मलेशिया का एक ऊष्णकटिबन्धीय जलवायु वाला सामान्य देशी पौधा है. पान का स्वाद कटु, कडुआ, तीखा, मधुर व कसैलेपन (पाँच रसों) से युक्त होता है. पान खाने से वायु रोग नहीं बढ़ता, कफ मिटता है, कीटाणु मर जाते हैं, मुँह से दुर्गन्ध नहीं आती, मुख की शोभा बढ़ती है, मुँह का मैल भी दूर होता है और कामाग्नि भी बढ़ती है. पान के ये ऐसे गुण हैं, जो स्वर्ग में भी दुर्लभ हैं.

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शुरुआत में पान का केवल औषधीय एवं धार्मिक महत्व था, लेकिन धीरे-धीरे जन सामान्य में बढ़ती  जागरूकता ने पान  मुख रंजक और मुख्य शोधक के रूप में अपना लिया.

भारत के अगर कृषि उद्योग (agriculture business ideas) की बात की जाए तो पान की खेती का एक प्रमुख स्थान है क्योंकि भारत के कुछ क्षेत्रों में पान का उतना ही अहम स्थान है जितना किसी अन्य नकदी फसल अथवा खाद्य सामग्री का.

वर्तमान आंकड़ों के मुताबिक भारत में पान की खेती लगभग 40 हजार हेक्टेयर में सफलतापूर्वक की जाती है. जिसमें पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडू और केरल के लाखों किसान उद्यमी लगे हैं.

भारत में लगभग 800 करोड़ रूपये के मूल्य के पान का उत्पादन प्रति वर्ष किया जाता है. बहरीन, कुवैत, सऊदी अरब, ओमान, नेपाल, बंगलादेश तथा कुछ यूरोपीय देशों में भारत पान का निर्यात भी बड़े पैमाने पर करता है. तो यदि आप भी पान की खेती करने के इच्छुक हैं, अथवा केवल जानकारी लेना चाहते हैं तो इस पोस्ट को पूरा जरूर पढ़ें. चलिए शुरू करते हैं-

पान के फायदे एवं पान की खेती के लाभ-

पान एक लतादार औषधीय पौधा है, मौजूदा समय में पान का उपयोग हर एक अपनी सुविधानुसार करना पसंद करता है. पान की खेती थोड़े निवेश के साथ और सीमित स्थान पर भी आसानी से की जा सकती है. हालाँकि आधुनिकता के दौर में विशेषकर शहरों में पान का सेवन कम हो गया है, क्योंकि आधुनिक पीढ़ी को पान की खासियतें ही नहीं पता होती… खैर

आइये जानते हैं कि पान एवं पान की खेती के लाभ, यदि आप खुद को निरोगी बनाने की इच्छा रखते हैं, साथ ही पान की खेती से लाभ उठाना चाहते हैं तो नीचे सुझाए गए बिन्दुओं पर ध्यान दें-

  1. शरीर के घाव, फोड़े व फुंसी में पान के पत्तों को पीसकर/कुचलकर लगाने से जल्द आराम मिलता है.
  2. पान चबाने से बनी लार से मुंह के दुर्गन्ध को दूर होती है, साथ ही अमाशय व पाचन शक्ति मजबूत होती है, और शरीर भी स्वस्थ बनता है.
  3. पान के पत्तों में आयोडीन, पोटेशियम, विटामिन ए, विटामिन बी1, विटामिन बी2 और निकोटिनिक एसिड जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होते है.
  4. पान का उपयोग सिर दर्द, खांसी, अस्थमा, गठियाबाई (जोड़ों का दर्द), एनोरेक्सिया आदि के लिए भी किया जाता है, इसके अलावा पान का पत्ता शारीरिक दर्द, जलन और सूजन से भी राहत प्रदान करता  है.
  5. सर्दी लग जाने पर पान को गर्म करके उसपर एरंड का तेल चुपड़कर छाती पर बाँधने से बच्चों की घबराहट कम हो जाती है और सर्दी से भी छुटकारा मिल जाता है.
  6. सुश्रुत संहिता (आयुर्वेद का ग्रन्थ) के अनुसार पान का सेवन गले की खरास एवं खिचखिच को दूर करने में सहयोग प्रदान करता है.
  7. अरूचि की समस्या निवारण के लिये प्रायः खाने के पूर्व पान के पत्ते का सेवन काली मिर्च के साथ करना लाभकारी होता है.
  8. सूखे कफ को निकालने के लिये पान के पत्ते का उपयोग नमक व अजवायन के साथ करना लाभकारी होता है.
  9. पान की खेती खेतों, बगीचों में अंतरफसल (Inter-crop) के तौर पर भी की जा सकती है.
  10. पान की खेती न्यूनतम पूंजी व अधिक श्रम प्रधान नकदी फसल है.
  11. इसके अलावा पान का उपयोग धार्मिक कृत्यों, पूजा-पाठ व हवन के कार्यो में मुख्य रूप से किया जाता है.

पान की खेती के लिए जलवायु, मिट्टी और तापमान-

अमूमन पान की खेती को किसी भी प्रकार की उपजाऊ मिट्टी में करना ही इसे सबसे सफल खेती बनाता है. जल भराव वाली भूमि पान की खेती के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती क्योंकि जलभराव की स्थिति में पान के पौधों की जड़ें गलकर नष्ट होने लगती हैं. पान की खेती में चयनित मिट्टी का pH मान 6 से 7 के बीच होना जरूरी है. साथ ही पान की खेती के लिए आर्द्रता युक्त नम जलवायु की आवश्यकता होती है.

पान का पौधा बेल वर्गीय फसल के अंतर्गत आता है, इसलिए इसके पौधे बरसात के मौसम में तीव्रता से विकसित होते हैं, जबकि 38-40 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म वातावरण होने पर पान के पौधे की ग्रोथ नहीं होती. पान की खेती गर्म क्षेत्रों में करने के लिए पान के पौधों को न्यूनतम 10 डिग्री और अधिकतम 35 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है.

किसी भी प्रकार की उपजाऊ मिट्टी में पान का पौधा आसानी से विकसित हो सकता है. पान के पौधे को इलायची के पौधे की तरह के वतावरण की आवश्यकता होती है. अधिक गर्म क्षेत्रों में पान की खेती करने के लिए पाली हाउस अथवा शेड नेट में भी की जाती है. किचन गार्डनिंग के तहत भी पान की खेती गमले में भी आसानी से की जा सकती है.

खेत तैयारी और उर्वरक की आवश्यकता-

पान का पौधा खेत में रोपने से पूर्व चयनित खेत को तैयार किया जाता है. इसके लिए चयनित खेत की गहरी जुताई करना आवश्यक है. गहरी जुताई करने से पुरानी फसलों के अवशेष नष्ट हो जाते हैं, साथ ही मिट्टी में आक्सीजन की मात्रा भी संतुलित हो जाती है. जुताई के बाद खेत को कुछ समय (लगभग 01 सप्ताह) के लिए ऐसे ही खुला छोड़ देते हैं.

जब खेत की मिट्टी सूखी दिखाई देने लगे तो रोटावेटर से धकेल कर मिट्टी को भुरभुरी बनाया जाता है. इसके बाद मिट्टी की उर्वरा बढ़ाने के लिए वर्मी कम्पोस्ट खाद अथवा गोबर की खाद के साथ नीम खली (खाद की मात्रा की आधी) को खेत में डाला जाता है.

भुरभुरी मिट्टी में खाद आदि मिला लेने के बाद खेत को पट/सेरावन से समतल कर किया जाता है. यदि आप पान के खेत में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करना चाहते हैं, तो एनपीके (NPK) का उपयोग आखिरी जुताई के समय कर सकते हैं.

चूंकि उत्तर भारत के मौसम में काफी विविधता देखने को मिलती है, इस कारण उत्तर भारत में पान की सफल खेती करने के लिए बरेजे का निर्माण किया जाता है. बरेजा निर्माण करने के लिए लकड़ी के लम्बे लटठे, बांस, सूखी पत्तियां, सन व घास, तार आदि की आवश्यकता होती है.

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पान की उन्नत किस्में-

चूंकि भारतीय संस्कृति में पान का विशेष महत्व है, इस कारण भारत में व्यवसायिक तौर पर पान की खेती तहत पान के पत्तों के आकार, रंग व स्वाद के अनुसार की कई किस्मों की खेती की जाती है. जो हैं-

  1. बांग्ला/बंगला,
  2. कलकतिया,
  3. सोफिया,
  4. बनारसी,
  5. मीठा,
  6. रामटेक,
  7. सांची,
  8. देशावरी,
  9. कपूरी और
  10. मघई

पान की मूल किस्में कितनी होती हैं?

वैज्ञानिक दृष्टि से अगर बात की जाए तो पान की केवल 5 या 6 किस्में होती हैं. जो हैं- बंगला, देशावरी, कपूरी, मीठा व सांची.

किचन गार्डेन तहत पान का पौधा कब लगाना चाहिए?

किचन गार्डन तहत गमले अथवा ग्रो बैग में लगाने के लिए बरसात और वसंत का मौसम सबसे उपयुक्त माना जाता है. वैसे पान के पौधे को पनपने के लिए नम आर्द्र मौसम की आवश्यकता होती हैं. जिसे कृत्रिम तरीके से भी तैयार किया जा सकता है.

पान का पौधा बनाने की विधि-

पान की खेती में बेहतर गुणवत्ता की फसल प्राप्त करने के लिए पान के ग्राफ्टेड पौधों (कलम) का उपयोग किया जाता है. इन्ही ग्राफ्टेड पौधों को ही खेतों में फसल के तौर पर प्रत्यारोपित किया जाता है. कटिंग तैयार करने के लिए मदर प्लांट (लगभग एक वर्ष पुराना) पौधों की आवश्यकता होती है.

पान का नया पौधा बनाने के लिए मदर प्लांट कहां से मिल सकता है?

पान का नया पौधा बनाने के लिए मदर प्लांट आपको आपकी क्षेत्रीय पौध नर्सरी में आसानी से मिल सकता है. इसके अलावा आप ऑनलाइन भी पान का मदर प्लांट खरीद सकते हैं.

मदर प्लांट के निचले तने से कलम काट कर तैयार की जाती है क्योंकि पान के पौधे की निचली शाखा में अंकुरण सामान्य की अपेक्षा तीव्र गति से होता है. मदर प्लांट से कलम को खेत में लगाना उचित माना जाता है.

कलम काटने के बाद इन कलमों (बेल की दो या तीन गांठें जमीन में) को seedling trey में गाड़ कर अंकुरित होने के लिए छोड़ दिया जाता है, जब कलमों में नई कोपले फूटने लगती हैं, तो समझ लेना चाहिए कि पान का पौधा खेत में रोपने हेतु तैयार हो चुका है.

पान की खेती की प्रत्यारोपण विधि व समय-

गर्म क्षेत्रों में फरवरी से मार्च और नम क्षेत्रों में मई से जून महीने के बीच के समय में पान के पौधों की रोपाई के लिए सबसे उपयुक्त होते हैं. उपर्युक्त दोनों समय का वातावरण पान की खेती के लिए अनुकूल होता है. पान के पौधों की सफल रोपाई के लिए शाम का समय सबसे अच्छा माना जाता है, क्यूंकि शाम के समय वातावरण लगभग स्थिर होता है, जो पौधे को पनपने में सहयोगी होता है.

पान के पौधों को कतारों में लगाया जाता है. पाली हाउस/खेत के तहत प्रत्येक बेल/पौधे के बीच 12 से 20 सेमी की दूरी रखी जाती है और जमीन में 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर रोपने की आवश्यकता है. पान की बेल लगाने के बाद हजारे/फव्वारे विधि से खेत में पानी लगाया जाता है.

पान की खेती की सिंचाई-

पान के पौधों को रोपाई के तुरंत बाद सिचाई की आवश्यकता होती है. गर्मी के मौसम में पान के पौधों को दो दिन के अन्तराल पर तथा सर्दी के दिनों में पान के पौधों को 15 से 20 दिन के अन्तराल पर सिचाई की आवश्यकता होती है.

इसके अलावा बारिश के मौसम में पौधों/मिट्टी की आवश्यकतानुसार पानी देना होता है. बारिश के मौसम में मिट्टी में जलभराव की स्थिति न पनपने दें, अन्यथा पान के पौधों की जड़ें पानी में गल जायेंगी. जिससे आपको नुकसान हो सकता है.

पान की खेती में खरपतवार नियंत्रण-

पान की खेती से अच्छा मुनाफा कमाने के लिए खरपतवार आदि पर नियंत्रण करना बेहद जरूरी चरणों में से एक है. खरपतवार होने से पान के पौधों की ग्रोथ धीमी हो जाती है, जिससे वांछित उत्पादन नहीं हो पाता.

पान की खेती में खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए नियमित रूप से फसल तैयार होने तक निराई-गुड़ाई किया जाना जरूरी होता है. यहां खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए लेबर की आवश्यकता होती है, क्योंकि हाथ से खरपतवार निकालना सबसे उपयुक्त और सबसे सही तरीका माना जाता है.

यदि आप चाहते हैं कि खरपतवार कम से कम पनपे तो इसके लिए आप मल्चिंग तकनीक का उपयोग करें. मल्चिंग के तहत आप पेपर अथवा प्लास्टिक शीट का भी उपयोग कर सकते हैं.

रोग एवं कीट प्रबंधन-

पान की खेती करते समय मुख्यत: पान के पौधे में निम्न रोग देखने को मिलते हैं-

रोग का नामरोग का प्रकारउपचार
पदगलन रोग (Root Disease)लता का निचला हिस्सा गल जानामिट्टी की गुणवत्ता एवं तापमान का उपचार करने की आवश्यकता है
पत्ती का गलन रोग (Leaf rot Disease)पैरासाइट फंगस (पत्ते पर भूरे और काले रंग के धब्बे बन जाना)
जड़ सूखा रोग (Root Disease)बेल की जड़ सूख जाना
जीवाणु पत्र लांछन(Bacterial stigma)बैक्टीरिया जनित बीमारी (पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे पड़ना, व पूरी पत्ती काली पड़ जाना)स्टेप्टो माइसेन सल्फेट 0.5% के घोल से छिड़काव
पत्र लांछन (Lettering Disease)भूरे रंग के गोलाकार धब्बे पड़नाकार्बेंडाजिम और मैंकोजेब दोनों की मिश्रित दवा का 02 ग्राम प्रति लीटर के घोल का छिड़काव 

फसल की हार्वेस्टिंग-

जब पान का पौधा घना और पौधे में पत्तियाँ चमकदार दिखने लगती हैं, तो समझ जाइये कि अब पान के पत्तों की हार्वेस्टिंग का समय हो चुका है. हार्वेस्टिंग के समय पान की पत्तियों को डंठल सहित तोड़ना होता है.

इससे पान का पत्ते लंबे समय तक ताजा बने रहते हैं. हार्वेस्टिंग के बाद पान के पत्तों को आकार व रंग के अनुसार अलग-अलग छांट कर मार्केट में बिक्री के लिए भेज दिया जाता है.

बाजार में पान के पत्ते की बिक्री कैसे की जाती है?

मौजूदा बाजार में पान के पत्ते का मूल्य प्रति पत्ता के आधार पर निर्धारित किया जाता है.

पान की खेती में मुनाफा-

बरेजा निर्माण तकनीक से 500 वर्ग मीटर में पान की खेती करने की लागत लगभग 50 से 55 हजार रूपये तक प्रति 03 वर्ष में आती है.

जिससे पहले वर्ष का मुनाफा लगभग 65 से 70 हजार, दूसरे वर्ष का मुनाफा लगभग 70 से 80 हजार रूपये तथा तीसरे वर्ष का मुनाफा लगभग 50 से 57 हजार रूपये तक इस प्रकार कुल 03 वर्षों का संभावित मुनाफा लगभग 1.75 लाख रूपये हो सकता है.

अब इस मुनाफे में कुल लागत (175000-55000=1,20,000 रुपये) निकाल दी जाए तो 1,20,000 रुपये की सकल आय प्राप्त हो जाती है. इसके अलावा तगड़ा मुनाफा कमाने के लिए मार्केटिंग का सहारा भी लिया जा सकता है.

अंत में-

स्वास्थ्य की दृष्टी से पान का सेवन करना (खाना) हमारे शरीर को मजबूत बनाता है, प्राचीन समय से हमारे पूर्वजो द्वारा इसका सेवन किया गया है जो आज की पीढ़ी के लिए भी जरूरी है और अपने गुणों के कारण पूरी दुनिया में उपयोग में लिया जा रहा है.

हमारा उद्देश्य सभी इच्छुक व्यवसायीयों, उद्यमियों, किसानों और खेती/कृषि प्रेमियों को बेहतर से बेहतर जानकारी प्रदान करना है, जिससे वे अपनी कृषि योग्यताओं को बेहतर से बेहतरीन बना सके और अपने द्वारा तैयार की गई ऑर्गेनिक सब्जियों और औषधियों से लाभ उठा सकें.

आशा है आपको इस लेख पान की खेती से बेर की खेती के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी जरूर मिली होगी, साथ ही… यदि कुछ छूट गया हो या कुछ पूछना चाहते हों तो कृपया comment box में जरूर लिखें. तब तक के लिए-

शुभकामनाएं आपके कामयाब और सफल कृषि के लिए

 धन्यवाद!

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