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किचन गार्डन में तरबूज की खेती कैसे करें | How to Cultivate Watermelon in the Kitchen Garden in hindi

टेरेस/किचन गार्डन में तरबूज की खेती (Cultivate Watermelon in the Kitchen Garden/watermelon ki kheti kaise kare), तरबूज की बुवाई के मिटटी तैयार करना, बुवाई का समय, आर्गेनिक खेती, तरबूज की खेती में कीट नियंत्रण, अधिक पैदावार के लिए पौधे की वैज्ञानिक कटिंग, पोलिनेशन का ध्यान रखना

भारत में शायद ही कोई ऐसा होगा जो तरबूज (watermelon) से अच्छे से वाकिफ न हो, तरबूज मूलतः बेल वाली फसल की सबसे महत्वपूर्ण किस्म है। कम समय, कम खाद और कम पानी की आवश्यकता होने के कारण तरबूज की खेती किचन गार्डेन या टेरेस गार्डेन के तहत आसानी से की जा सकती है. तरबूज की खेती मूल रूप से एक नकदी फसल है.

अमूमन तरबूज के कच्चे फलों का उपयोग सब्जी बनाने में किया जाता हैं, वहीं पकने के बाद मीठे, रसीले और खाने में बेहद स्वादिष्ट तरबूज फल हर किसी की पहली पसंद बन जाते हैं. गर्मी के दिनों में हर कोई अपने आपको तरबूज का सेवन करने से रोक नहीं पाता. जिस कारण मौसमी फलों की बाजार में पके तरबूजों की मांग बड़े स्तर पर हमेशा बनी रहती है.

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लेकिन बाजार में मिलने वाले अधिकतर तरबूजों के उत्पादन में कई तरह के खतरनाक कीटनाशक केमिकल का उपयोग कर किया जाता है, जो कहीं न कहीं तरबूज सेवन करने वाले को परोक्ष रूप से क्षति पहुचाने का काम करता है. तो इसका समाधान क्या है?

अगर आप भी ऑर्गेनिक फलों और सब्जियों को खाने के शौक़ीन हैं, साथ ही ऑर्गेनिक तरीके से उगाकर मीठे और रसीले तरबूज खाना चाहते हैं तो आज हम इस पोस्ट के मध्यम से आपके साथ किचन गार्डन में तरबूज की खेती कैसे करें? की विस्तृत जानकारी साझा करने जा रहे हैं.

Table of Content

तरबूज की खेती के तहत तरबूज की किस्में-

किचन गार्डनिंग व टेरेस गार्डनिंग के तहत गमलों या ग्रो बैग में तरबूज की खेती के तहत अच्छी उपज लेने के लिए आप तरबूज के हाइब्रिड बीजों का चयन करें.

No.किस्मेंफसल तैयार अवधि
1शुगर बेबी85 से 90 दिन 
2पूसा बेदाना85 से 90 दिन 
3आशायी यामातो85 दिन 
4न्यू हेम्पशायर मिडगट85 दिन 
5डब्लू 1985 से 90 दिन 

तरबूज की खेती के तहत तरबूज बीज बुवाई समय-

अमूमन मार्च महीने से तरबूज बाजार में देखने को मिलना शुरू हो जाते हैं. ये वो तरबूज होते हैं जिनकी बुवाई दिसम्बर के अंतिम सप्ताह में की जाती है जो 85 से 90 दिनों में परिपक्व होकर बाजार में बिक्री लायक तैयार हो जाते हैं. लेकिन किचन गार्डेन में तरबूज बीज बुवाई का एक अनुकूल समय मध्य फ़रवरी होता है. व्यवसायिक खेती के तहत तरबूज की बुवाई-

  • दिसम्बर अंतिम से मार्च अंतिम तक की जाती है.
  • लेकिन किचन/टेरेस गार्डेन के तहत तरबूज की बुवाई का सबसे अनुकूल समय मध्य फ़रवरी को माना जाता है.

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पौध तैयार करना-

बाजार से बीज को लाने के बाद एक डिस्पोजल पेपर कप या गिलास में ऊपर तक पानी भर कर उसमें कम से कम तरबूज के 02 से 06 बीजों को 24 घंटो के लिए भिगो दें.

कम से कम 24 घंटों बाद इन बीजों की रोपाई seedling ट्रे अथवा डिस्पोजल पेपर कप या गिलास में 50% साधारण उपजाऊ गार्डन मिट्टी या कोकोपीट और 50% गोबर/वर्मी कम्पोस्ट खाद भरकर उसमें करना है. यहाँ बीजों की रोपाई करते समय बीज के नुकीले भाग को नीचे की ओर और दूसरे भाग को ऊपर की ओर करके मिट्टी में 01 से डेढ़ इंच नीचे रोपना है. उसके बाद बीज रोपे गए पात्र में अच्छे से पानी देना है.

बीज की रोपाई के बाद करीब 04 से 06 में तरबूज के पौधे पूरी तरह से अंकुरित होकर बहार निकाल आएँगे. जो पूरी तरह से स्वस्थ्य और मजबूत होंगे. इसके बाद इन बीज से तैयार हुई पौध को 10 से 14 दिनों के बाद वांछित गमले में स्थानांतरित करना होता है.

नोट- seedling tray अथवा डिस्पोजल पेपर कप या गिलास में अंकुरण से पहले पानी के निकासी (ड्रेनेज) के लिए होल (छिद्र) बनाना बिल्कुल न भूलें.

तरबूज की खेती के लिए गमलो की मिट्टी तैयार करना-

किचन गार्डनिंग के तहत उच्च स्तर की बागवानी करने में सबसे अहम भूमिका निभाती है- soil media मतलब पौधों की मिट्टी की. आमतौर पर हममें से कई लोग इस चीज पर कोई खास ध्यान नहीं देते है, बस पौधों को सीधे गमलो की मिट्टी में लगा देते हैं और पानी के साथ कुछ बेसिक खाद आदि देकर अपना पीछा छुड़ा लेते हैं, 

इसके बाद इंतजार करते हैं कि हमारा लगाया गया पौधा जल्द से जल्द बड़ा होकर अच्छे फल व फूल देना शुरू कर दे, लेकिन जब पौधा अच्छे फल व फूल नहीं देता तो कहते हैं कि वो पौधा ही ख़राब है. समस्या यह नहीं है कि पौधा ख़राब है, बल्कि मुख्य समस्या यह है कि हमें सही जानकारी नहीं है.

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किचन गार्डनिंग के तहत किसी भी तरह से पौधे को ग्रो करने में हमें जिस मिट्टी या soil media की जरूरत होती है, उसे आसानी से घर पर बनाया जा सकता है. तरबूज के पौधे को उगाने के लिए हमें जिस तरह की मिट्टी आवश्यकता होती है उसे बनाने के लिए हमें इन चीजों की जरूरत होती है- 

  1. साधारण उपजाऊ गार्डन मिट्टी – 04 भाग
  2. गोबर/वर्मी कम्पोस्ट खाद – 04 भाग
  3. नदी की मिट्टी (मोरंग) – 03 भाग
  4. कोकोपीट – 02 भाग
  5. नीम खली – 50 से 100 ग्राम
  6. सरसों खली – 100 ग्राम
  7. स्टोन पाउडर – 200 ग्राम
  8. धान की भूसी (वैकल्पिक) – 02 भाग

सुझाव-

  • किचन गार्डनिंग में विशेष तौर पर कीटाणु नाशक के रूप में नीम खली ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर का उपयोग किया जाता है. आप इसके स्थान पर केमिकल फर्टिलाइजर का उपयोग भी कर सकते हैं. लेकिन प्रश्न यह है कि आप आर्गेनिक फल खाना चाहते हैं या केमिकल आधारित.
  • उपरोक्त सभी बताये गए घटकों की मात्रा को 24 इंच या इससे ऊपर के गमले/ग्रो बैग के अनुसार ली गई है, जिसे आपस में मिलकर वांछित मिट्टी तैयार कर लेनी है. इसके बाद ही मिट्टी में तरबूज के पौधों को गमलों या ग्रो बैग में स्थानांतरित (transplant) कर लगाया जाता है.
  • उपरोक्त तैयार की गई मिट्टी में लगभग हर तरह की बेल वाली सब्जियां व फलों की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है.

पौध को गमलों में स्थानांतरित करना-

एक बार जब हमारी पौध पूरी तरह से तैयार हो जाती है तो इसके बाद अगले चरण में हमें पौधों को बड़ी क्षमता के गमलों या ग्रो बैग्स में स्थानांतरित करना जरूरी होता है. किचन गार्डनिंग या टेरेस गार्डनिंग के तहत तरबूज के पौधों से बेहतर उपज लेने के लिए हमें कम से कम 24 से 30 इंच के गमलों या ग्रो बैग्स का चुनाव करना चाहिए. 

नोट- यदि आप टेरेस (छत पर) गार्डनिंग के तहत तरबूज के पौधे लगा रहे हैं तो मेरे सुझाव से आप गमलों के स्थान पर ग्रो बैग का प्रयोग करें.

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गमलों/ग्रो बैग के चयन के बाद सबसे पहले गमलों में पानी निकासी (ड्रेनेज) का प्रबंधन करना है. उसके बाद तैयार की गई मिट्टी को वांछित पात्र के मुहाने से 01 इंच नीचे तक भर कर अच्छे से पानी देकर लगभग 24 घंटों के लिए छोड़ देना है, इससे पात्र की मिट्टी अच्छे से पात्र में स्थित हो जाएगी. 

अगले दिन पात्र की मिट्टी में हल्की गुड़ाई कर अंकुरित हो चुकी तरबूज पौध को 24 से 30 इंच के गमलों या ग्रो बैग्स में एक दूसरे से 03 इंच की पर 02 पौधों को लगाकर थोड़ा से पानी दे देना है. साथ ही आपका गमला/ग्रो बैग ऐसे स्थान पर होना चाहिए, जहां दिन भर की धूप व सीधे सूर्य के प्रकाश आता हो.

इसके बाद आपको अपने तरबूज के पौधों में इतना ही पानी देने की आवश्यकता है, जितने में उसकी मिट्टी की नमी हमेशा बरक़रार रहे. इसके साथ ही आपको गमलों में बांस आदि की लम्बी क्षणे भी लगानी होंगी क्योंकि तरबूज का पौधा एक बेल वाला पौधा होता है.

इसे भी पढ़ें- अपने किचन गार्डेन में लगाएं गरम मसाले का पौधा

सुझाव-

  • ज्यों-ज्यों तरबूज की बेल बढ़ेगी, बेल का सही से प्रबंधन करने के लिए मचान अथवा बायोनेट की व्यवस्था करनी आवश्यक है. समय से किया गया प्रबंधन परिणाम में हमेशा अच्छा मुनाफा व सुखद एहसास देता है.
  • यदि आपके पास वांछित नाप/आकार का गमला अथवा ग्रो बैग नहीं है तो आप तरबूज के पौधों को बोरी (सीमेंट, दाल, चावल व अन्य प्रयोग में न ली जाने वाली आनाज बोरियां) आदि भी रोपण कर सकते हैं.
  • हर 20 दिन के अंतराल पर पौधों की मिट्टी में हल्की गुड़ाई जरूर करें, साथ ही गुड़ाई के बाद 100-150 ग्राम वर्मी कम्पोस्ट में कम से कम 12 से 15 ग्राम नीम खली मिलाकर पौधे देना चाहिए, फर्टिलाईज़र देने के बाद केवल उतना ही पानी दें, जितने में पौधे की मिट्टी में नमी बनी रहे.

तरबूज की खेती के तहत पौधों की कटिंग करना-

करीब 25 से 27 दिनों बाद तरबूज के पौधों की अच्छी ग्रोथ आपको दिखाई देगी. अब शुरू होता है अगला चरण, जिसमें हमें तरबूज के पौधों की प्रूनिंग/छटाई/कटिंग करनी है. तरबूज के पौधों से बेहतर उपज लेने के लिए हमें बन्जी कटिंग करनी होती है. अब प्रश्न यह है कि ये बन्जी कटिंग व 3G कटिंग क्या होती है?

बन्जी कटिंग-

पौधे के अंकुरण के बाद पौधे की मुख्य शाखा के ऊपरी छोर को काट दिया जाता है. इस कटिंग प्रकिया (Cutting Method) को पौधे की बन्जी कटिंग कहते हैं. किचन गार्डनिंग या टेरेस गार्डनिंग के तहत तरबूज के पौधों की बेल को जमीन आदि पर नहीं फैलाया जाता है बल्कि जाल आदि मदद से जमीन से ऊपर ही फैलाया जाता है. 

बन्जी कटिंग से कटिंग सिरे पर नई बेलों/शाखाओं का विकास होता है जिसे किसी जाल आदि पर आसानी से फैलाया जा सकता है. कटिंग आदि के बाद पौधे को वर्मी कम्पोस्ट या लीफ कम्पोस्ट की खाद प्राथमिकता पर जरूर दें. इसके साथ ही यदि जरूरी लगे तो पौधे को रोगाणुओं के खतरे से बचाने के लिए ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर का छिडकाव जरूर करें.

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3G कटिंग- 

पौधे की नई शाखा निकलने के बाद शाखा से mother leaf को छोड़कर जो तीसरा पत्ता निकलता है उसे पौधे का थर्ड जनरेशन या तीसरी पीढ़ी कहते हैं और 3G कटिंग में पौधे के तीसरे पत्ते के बाद के भाग को काट दिया जाता है, जिससे पौधा बच गए पत्तों के मुहाने से नई-नई शाखाएं विकसित करता है, और जिससे पौधे के पास अधिक संख्या में फूल व फल देने के लिए अधिक शाखाएं होती है. इसी तर्ज पर 2G व 1G कटिंग भी की जाती है.

नोट- किसी भी तरह की कटिंग करने से पहले कटिंग औजारों को अच्छे से सैनिटाईज जरूर कर लें.

ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर और रोगाणुनाशक-

एक बेहतरीन ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर और रोगाणुनाशक जिसका निर्माण हम अपने घर पर आसानी से और कम कीमत पर तैयार कर सकते हैं. इसका इस्तेमाल करने से आपके तरबूज के पौधों पर तरबूज के पौधे की ग्रोथ बहुत तरह से होती है. घर पर ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर बनाने के लिए सिर्फ एक चीज की जरूरत होती है और वह है- नीम खली, नीम का तेल और सरसों की खली.

02 लीटर पानी में करीब 07 से 10 ml नीम के तेल को मिलाकर पौधे व उसकी पत्तियों पर स्प्रे कर देना है, आप 15 दिनों के अंतराल पर इस ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर का उपयोग कर सकते हैं. नीम खली को आप सीधे पौधे की जड़ में गुड़ाई कर दे सकते हैं. 

साथ ही 20 से 30 ग्राम सरसों की खली को 02 लीटर पानी में 24 घंटे भिगोकर जो मिश्रण तैयार होता है उसे सीधे या छानकर तरबूज के पौधे को सप्ताह में एक बार ही देना होता है. इसे देने से तरबूज के पौधे में ढेर सारे नर और मादा फूल आते हैं जो पोलिनेशन के बाद फल (तरबूज) में परिवर्तित हो जाते हैं.

पानी की मात्रा संतुलित करना-

जब तरबूज के पौधों में फूल आने शुरू हो जाते है तो सप्ताह में एक बार या महीने में 02 बार सरसों खली से बने मिश्रण को जरूर दें. साथ फूल आने के बाद पौधे को बस उतना ही पानी देना है, जितने में उसकी मिट्टी में नमी बनी रहे. 

इसके साथ ही जैसे-जैसे पौधे की शाखाएं बड़ी होकर फैलती हैं तो इन शाखाओं का उचित प्रबन्धन किया जाना प्राथमिक अनिवार्यता है क्योंकि इन्ही शाखाओं में पहले तरबूज के फूल और फिर फल (तरबूज) लगते है. छत आदि पर पौधे की शाखाए अच्छे से फैले, इसके लिए छत पर बांस की डंडियाँ व बायोनेट भी लगा सकते हैं.

तरबूज की खेती के तहत पोलिनेशन का ध्यान रखना-

अब तक आपका तरबूज का पौधा फल देने लायक विकसित हो चुका है, जब पौधे में फूल आना शुरू हो जाते हैं तो यह जरूरी हो जाता है कि आए हुए फूल फलों (तरबूज) में आसानी से परिवर्तित हो जाए. पौधे के फूल फलों में तभी बदलते हैं जब एक फूल के परागकण दूसरे फूल के परागकण से निषेचित हो जाए. 

अमूमन परागकणों का निषेचन फूलो का रस चूसने वाले कीट-पतंगे जैसे- मधुमक्खी और तितलियों द्वारा स्वत: ही किया जाता है, लेकिन बढ़ते प्रदूषण व कम हरियाली की उपलब्धता के कारण आज शहरों में इन कीटों का आवागमन बहुत ही कम मात्रा में होता है. 

यदि आप चाहते हैं आपके गार्डेन में ये कीट प्राकृतिक रूप आकषित हों तो आप अपने गार्डेन में तेज सुगंध के साथ चटक रंग के फूलों के पौधे प्राथमिकता पर जरूर लगाएं.

यदि फिर भी ये कीट आपके गार्डेन में नहीं आ रहे हैं तो तरबूज के फूलों का पोलिनेशन (पराग निषेचन) आपको मैन्युअल तरीके से करना होता है. मैन्युअल तरीके से पोलिनेशन करने के लिए आप कान साफ करने वाली स्टिक (क्षण) की मदद से एक नर फूल के परागकणों को लेकर दूसरे मादा फूल के परागकणों में सावधानी से मिलाना होता है. यह पराग निषेचन प्रक्रिया बहुत ही ध्यान व हल्के हाथों से की जाती है, जिससे फूल को कोई क्षति न पहुचे और पराग निषेचन भी सुगमता से हो जाए.

ऐसा करने से जिन फूलो में पराग निषेचन प्रक्रिया अच्छे से हुई होगी वो फूल कुछ समय बाद फल की शक्ल में आ जाते है और जल्द ही विकसित होकर एक तंदरुस्त तरबूज में परिवर्तित हो जाते हैं.

किचन गार्डेन के तहत तरबूज की खेती में लगने वाले रोग-

मौलिक तौर पर अधिकांश फलों व सब्जियों के पौधों पर पौधों को नुकसान पहुचाने वाले कीटों का आक्रमण होता ही होता है, अगर समय रहते इन कीटों का समुचित समाधान नहीं किया जाए तो ये कीट पौधे का सम्पूर्ण सर्वनाश करने में भी सक्षम होते हैं.

तरबूज के पौधे पर भी पौधे को क्षति पहुचाने वाले कीटों का बार-बार जरूर आक्रमण होता रहता है. इसलिये यह जरूरी हो जाता है कि तरबूज के पौधे की देखभाल संजीदगी से की जाए. अमूमन तरबूज के पौधे में कीटों की वजह से कुछ रोग देखने को मिलते हैं. जैसे-

  1. तरबूज के पौधे की पत्तियों का सफ़ेद हो जाना.
  2. पनपते तरबूज का काला होकर स्वत: ही गिर जाना.
  3. पत्तियों का रंग पीला पड़ जाना.
  4. पौधे में अच्छी ग्रोथ का न होना.
  5. पौधा बढ़ते-बढ़ते मुरझा जाना (सडन रोग).

ये कुछ रोग हैं जो किचन गार्डनिंग या टेरेस गार्डनिंग के तहत तरबूज के पौधे में ख़ास तौर पर देखने को मिलते हैं. इसका समाधान यह है कि अगर तरबूज के पौधे की पत्तियां सफ़ेद हो रही हैं साथ ही यदि पनपती तरबूज का काली होकर स्वत: ही गिर जा रही है तो समझ लीजिए कि आपके तरबूज के पौधे पर कीटों का आक्रमण हुआ है, इनसे निजात पाने के लिए आप पौधे पर कीटनाशक (ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर) का हर सप्ताह में एक बार अच्छे से जरूर करें.

ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर (कीटनाशक) बनाने की विधि ऊपर बताई जा चुकी है. इसके साथ ही जब आपको लगे कि पौधा कीट मुक्त हो चुका है तो ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर (कीटनाशक) का उपयोग 15 दिन में एक बार ही करें.

वहीं यदि पौधे की पत्तियों का रंग समय से पहले पीला हो जा रहा है व पौधे में अच्छी ग्रोथ नहीं दिख रही है तो समझ जाइए कि पौधे की मिटटी में पोषक तत्वों की कमी हो गयी है, पौधे की मिट्टी में हल्की गुड़ाई के बाद खाद व खाद में नीम खली मिलाकर दें.

इसके साथ ही यदि तरबूज का पौधा बढ़ते-बढ़ते मुरझा जा रहा है तो समझ जाइए कि पौधे के गमले का पानी निकासी छिद्र (ड्रेनेज होल) बंद हो गया है जिससे गमले में अतिरिक्त पानी ठहर रहा है. इसका तुरंत निपटान/समाधान किया जाना बेहद जरूरी है अन्यथा पौधे की जड़ें पानी में गल जाएंगी और पौधा मर जाएगा.

तरबूज की खेती को हार्वेस्ट करना-

यदि आपने सब कुछ चरणबद्ध तरीके से किया है तो लगभग 85 से 90 दिनों बाद आप अपनी आर्गेनिक तरबूजों की हार्वेस्टिन्ग करना शुरू कर सकते हैं। किचन गार्डनिंग या टेरेस गार्डनिंग के तहत तैयार तरबूजों को इच्छानुसार ही हार्वेस्ट करें. 

पूरी तरह से ऑर्गेनिक प्रक्रिया द्वारा उगाये गए तरबूज खाने में बेहद स्वादिस्ट होने के साथ-साथ पर्याप्त पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं, यदि आप स्वाद के शौकीन हैं तो ये ऑर्गेनिक तरबूज आपको बहुत पसंद आयेंगे. 

FAQ.

तरबूज कितने दिन में पक जाता है?

किचन/टेरेस गार्डेन के तहत प्राकृतिक तरीके से उगाए गए तरबूज 85 से 95 दिन में हार्वेस्ट करने को तैयार हो जाते हैं.

तरबूज बोने का सही समय क्या है?

किचन गार्डेन के तहत घर पर तरबूज बोने का सही समय मध्य फ़रवरी सबसे अनुकूल माना जाता है.

तरबूज का बीज कौन सा अच्छा है?

किचन/टेरेस गार्डेन के तहत तरबूज की सफल खेती के लिए शुगर बेबी, पूसा बेदाना और डब्लू 19 किस्म बेहतर मानी जाती हैं.

तरबूज में सबसे ज्यादा क्या पाया जाता है?

ऑर्गेनिक तरीके उगाए गए प्रत्येक तरबूज में लाइकोपीन, आयरन, फाइबर, पोटैशियम और विटामिन-ए, बी व सी तत्व पाए जाते हैं. साथ ही तरबूज में पाए जाने वाले सभी तत्व मिलकर एंटीऑक्सीडेंट की तरह काम करते हैं. यदि किसी को चिडचिडाहट की समस्या होती है तो डॉक्टर ऐसे मरीजों को एंटीऑक्सीडेंट खाने/लेने की सलाह देते हैं.

तरबूज के बीज में कितना प्रोटीन होता है?

तरबूज के बीजों में मोनो-अनसैचुरेटेड और पॉली-अनसैचुरेटेड फैटी एसिड अच्‍छी मात्रा पाई जाती है.

अंत में-

स्वास्थ्य की दृष्टी से केमिकल रहित सब्जियां और फल खाना हमारे शरीर को बेहतर बनाता है और किचन गार्डनिंग व टेरेस गार्डनिंग के तहत ऑर्गेनिक तरबूज उगाना एवं खाना चाहते है तो थोड़ी देख-रेख के बाद तरबूज की खेती आसानी से सफल हो जाती है. यदि आप चाहते/चाहती हैं कि आप भी ऑर्गेनिक फलों का लुफ्त उठा पाएं तो तरबूज व खरबूजे को अपने किचन गार्डेन या टेरेस (छत) गार्डेन में जरूर उगाएं.

हमारा उद्देश्य सभी किचन गार्डनिंग व टेरेस गार्डनिंग (बागवानी) प्रेमियों को बेहतर से बेहतर जानकारी प्रदान करना है, जिससे वे अपनी बागवानी योग्यताओं को बेहतर से बेहतरीन बना सके और अपने द्वारा तैयार की गई ऑर्गेनिक सब्जियों से लाभ उठा सकें.

आशा है आपको इस लेख ‘किचन गार्डन में तरबूज की खेती कैसे करें’ से किचन व टेरेस गार्डनिंग के तहत तरबूज की वैज्ञानिक खेती के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी जरूर मिली होगी, यदि आप अन्य कोई जानकारी पाना चाहते है तो हमारे Telegram चैनल से जुड़ें. साथ ही पोस्ट में यदि कुछ छूट गया हो तो कृपया comment box में जरूर लिखें. तब तक के लिए —-

“शुभकामनाएं आपके कामयाब और सफल बागवानी के लिए”

धन्यवाद!

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