बिजनेस में उत्पाद की मार्केटिंग कैसे करें | How to Start Product Marketing Business | Advertisement Business ideas in hindi

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उत्पाद की मार्केटिंग (Product Marketing): आज कोई भी ऐसा नहीं होगा जिसने मार्केटिंग (विपणन) शब्द को न सुना हो. अगर आप एक कारोबारी/व्यवसायीय अथवा उद्यमी या व्यापारी हैं, तो आप इस शब्द से अच्छे से वाकिफ जरूर होंगे.

मौजूदा बाजार में किसी भी उत्पाद को आसानी से बेचने या उत्पाद की मार्केटिंग (product marketing) के लिए हमें उस उत्पाद की एक अलग और अनोखी रणनीति बनाकर मार्केटिंग करनी होती है.

अक्सर नए उद्यमी व्यवसाय शुरू करने से पहले व्यवसाय की रूपरेखा और रूपरेखा के मुताबिक लगभग एक अनुमानित लागत खर्च का बजट बनाते हैं, अमूमन इस तरह के बजट में व्यवसाय के पंजीकरण से लेकर फिनिश उत्पाद तक का खर्च शामिल होता है. पर इस बजट में एक सबसे बड़ी खामी यह होती है कि उद्यमी अपने उत्पाद की मार्केटिंग (जागरूकता फ़ैलाने) के लिए कोई लागत (advertisement के लिए) निर्धारित नहीं करता.

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उत्पाद की मार्केटिंग कैसे करें | How to Start Product Marketing

जिससे इच्छुक उद्यमी को अपना नया उत्पाद (new product) बाजार में बेचने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है, क्यों? क्योंकि जब भी कोई नया उत्पाद बाजार में उतरता है तो लोगों/वांछित उपभोक्ताओं को इस नए उत्पाद की उपयोगिता की जानकारी व उत्पाद के प्रति जागरूकता न के बराबर ही होती है.

नए ब्रांड के उत्पाद व उसकी उपयोगिता की जागरूकता फ़ैलाने के लिए ही मार्केटिंग (advertisement) की जाती है या यूं कहा जाए कि माल बेचने का तरीके (product advertisement ideas) इजात किये जाते है. जिसे मौजूदा समय में विज्ञापनों के माध्यमों द्वारा आसानी से किया जा रहा है और उद्यमों/कारोबारों का विस्तार भी किया जा रहा है.

और आज इस पोस्ट के माध्यम से हम आपके साथ मार्केटिंग (marketing ideas) के बारे में अनुभव आधारित विस्तृत जानकारी साझा करने जा रहे हैं, जहां विशेष तौर से चर्चा का विषय रहेगा कि किसी भी उत्पाद की मार्केटिंग (product marketing plan) कैसे करें?, मुख्य एवं कारगर मार्केटिंग कितने तरह की होती है?

मार्केटिंग से पहले मनोविज्ञान को समझना क्यों जरूरी है? और मार्केटिंग की परिभाषा क्या है? तो चलिए शुरू करते हैं- सबसे पहले बात करते हैं मार्केटिंग की परिभाषा क्या होती है? उत्पाद की मार्केटिंग (marketing skills) को समझने से पहले यहाँ दो प्रश्न लेना जरूरी है-

मार्केटिंग क्या है (marketing kya hai) और कैसे की जाती है?

समझिये इस बात को कि कोई भी उत्पाद किसी न किसी बिजनेस के अंतर्गत ही आता है. यदि आप बाजार में अपना उत्पाद उतारने से पहले मजबूत पकड़ बनाना चाहते हैं. तो इसके लिए आप अपने बिजनेस की मार्केटिंग करने के लिए ऐसी रणनीति तैयार करें… जो सांकेतिक हो…साथ ही उपभोक्ताओं में जिज्ञासा व उत्पाद हांसिल करने की इच्छा दृण हो….

बिजनेस की मार्केटिंग के लिए आप द्वारा शुरूआती चरणों में डिजिटल मार्केटिंग मीडिया जैसे- YouTube, Facebook, Instagram, LinkedIn और Whatsapp जैसी apps का उपयोग करना, सबसे कारगर एवं उत्तम रणनीति (product marketing strategy) है.

बाजार और बाजारवाद को कैसे समझें?

देखिये! बाजार उसे कहा जाता है जहाँ अमूमन हम सभी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए वांछित उत्पाद/सामान की खरीद-फरोख्त तय की गई कीमत पर करते हैं.

जबकि बाजारवाद बाजार से बिल्कुल अलग होता है. बाजारवाद के तहत बाजार में ऐसे उत्पादों की आवश्यकता पैदा की जाती है, जिसकी वास्तविकता में जरूरत नहीं होती. मसलन मौजूदा मार्केट में एक ही उत्पाद के कई विकल्प जरूर देखने को मिलते हैं जो कि बाजारवाद के द्योतक हैं.

उदाहरण के तौर पर नहाने के साबुन को समझिये- सभी साबुनों का एक ही उद्देश्य होता है कि मैल/गन्दगी को साफ करना. जबकि मौजूदा बाजार में एक प्रकार का साबुन होने की अपेक्षा विभिन्न तरह से साबुन उपलब्ध हैं.

मार्केटिंग की परिभाषा (Definition of Marketing)-

अपने उत्पाद की उपयोगिता को बाजार में मौजूद अन्य उत्पादों से बेहतर बनाकर एवं बताकर (विज्ञापन के माध्यम से) निर्धारित ग्राहकों/उपभोक्ताओं तक पहुचना ही मार्केटिंग है. लेकिन यह मार्केटिंग एक सामान्य और साधारण परिभाषा है. इसमें सुधार संभव है.

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मार्केटिंग की प्रभावी परिभाषा जिसे मैंने खुद करने से सीखा है, उसी को आपके साथ साझा करने जा रहा हूँ, साथ ही यदि आप अपने उत्पाद को बाजार में उतारना चाहते हैं या उतार चुके हैं और अपने उत्पाद की बिक्री में निरंतर वृद्धि देखना अथवा माल बेचने का तरीका सीखना चाहते हैं तो इसे बड़े ध्यान से और एकाग्र होकर जरूर समझें-

देखिये! आज बाजार में ढेरों उत्पाद मौजूद हैं, जिसमें एक ही उत्पाद की कई किस्में भी मौजूद होती है. लेकिन आपने इस बात को जरूर गौर किया होगा कि कुछ उत्पादों की डिमांड हमेशा बनी रहती है जो केवल अपने ब्रांड नाम से ही आसानी से बिक जाते हैं ऐसा क्यों? क्योंकि ग्राहकों/उपभोक्ताओं का उस उत्पाद अथवा उस ब्रांड पर भरोसा बन चुका है.

वही कुछ उत्पाद ऐसे भी होते हैं जिसे ग्राहक/उपभोक्ता पूरी विश्वनीयता के साथ खरीदने से कतराते हैं, भले वह उत्पाद गुणवत्ता में सबसे बेहतरीन ही क्यों न हो. इसका मुख्य कारण एक ही हो सकता है कि ग्राहकों/उपभोक्ताओं को उस बेहतर उत्पाद के बारे में अच्छी जानकारी का न होना अथवा उत्पाद के प्रति जागरूकता का न होना. यहीं पर सबसे अहम् भूमिका निभाती है product advertisement व उत्पाद की मार्केटिंग…

“मार्केटिंग जिसका मुख्य काम ही होता है कि वांछित उत्पाद की उपयोगिता से सभी जनसामान्य को जागरूक कर, ऐसी जागरूकता व्याप्त करना, जो उनके विचारों में ऐसे बैठ/स्थापित हो जाए कि सभी जनसामान्य उस वांछित उत्पाद के बारे में चर्चा करें और उत्पाद को उपयोग में लेने के लिए उत्सुक/आतुर रहें.” 

मतलब आपको अपने उत्पाद का प्रचार-प्रसार (विज्ञापन) एक ऐसे प्रभावी ढंग और विचार से करना है, जो सभी उपभोक्ताओं के दिमाग में झट से रच-बस जाए और लोग जाने अनजाने में आपके उत्पाद की चर्चा एक दूसरे से करने लगें. यदि लोग ऐसा करने लगते हैं तो समझ लीजिये कि आपकी मार्केटिंग रणनीति सफल हो चुकी है.

मनोविज्ञान को समझना (Understand of Psychology)-

किसी भी उत्पाद की मार्केटिंग से पूर्व एक उद्यमी को वांछित ग्राहकों/उपभोक्ताओं की मानसिकता के मनोविज्ञान को समझना बेहद जरूरी है. क्यों? क्योंकि प्रत्येक मनुष्य मूल रूप से एक भावनात्मक प्राणी है. इसका मुख्य कारण यह है कि “जरूरी नहीं कि किसी भी 02 इंसानों की नजरिया, भावनाएं या व्यवहार एक ही उत्पाद के लिए एक समान हों.”

बेचने-की-कला

हो सकता है कि जो चीज आपको बहुत अच्छी लगती हो, अन्य किसी को वह चीज बिल्कुल भी पसंद ही न आए, यह पूरी तरह से मुमकिन है, और समाज में ऐसे दृश्य आसानी से देखने भी मिलते हैं. तो उत्पाद की मार्केटिंग से पूर्व यह जरूरी है कि जिस उत्पाद की मार्केटिंग की जानी है उसके ग्राहक/उपभोक्ता कैसे हैं. मतलब किस आयु वर्ग के हैं?,

उनकी मानसिकता में अमूमन क्या होता है? और उनकी मानसिकता में उत्पाद की उपयोगिता से सम्बंधित विचार कैसे डाले जा सकते हैं, जिससे उत्पाद के प्रति ग्राहकों/उपभोक्ताओं की मानसिकता में जागरूकता व्याप्त की जा सके.

आज बड़े से बड़ी कंपनी अपने उत्पाद के विज्ञापन में एक इमोशन टच देने का प्रयास प्राथमिकता पर जरूर करती हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि हमारा दिमाग इमोशन को लम्बे समय तक आसानी से याद रखता है. इमोशन आधारित विज्ञापनों जब हम TV, रेडियो या पत्रिका पर देखते, सुनते या पढ़कर महसूस करते हैं तो महसूस करने की प्रक्रिया हमारे दिमाग में स्टोर हो जाती है, जो हमें प्रेरित करने के साथ उस चीज को पाने की ओर अग्रसारित करती है, जिससे हम प्रेरित हुए हैं.

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देखा जाए तो मनोविज्ञान पढ़ने में मात्र एक शब्द ही है, जिसका मतलब मन का विज्ञान होता है, पर असल में मनोविज्ञान एक अंतहीन विषय है जिस पर लगभग सभी जीवित प्राणीयों का जीवन निर्भर करता है. खैर यह मनोविज्ञान का विषय है, जिस पर फिर कभी चर्चा करेंगे.

सुझाव (Suggestion)-

  1. उत्पाद की मार्केटिंग के लिए बनाए गए विज्ञापन में एक ऐसी भावना को जरूर प्रदर्शित करें, जो ग्राहकों/उपभोक्ताओं की मानसिकता पर गहरी छाप छोड़ने में सक्षम हो.
  2. लोगों की परेशानियों को दूर करने के लिए उपाय सुझाएं, यदि वे चाहे तब ही अन्यथा आप मूर्ख समझे जाएंगे.
  3. जिससे भी भेंट करें, उससे पूरी सकारात्मकता और गर्मजोशी से मिलें, यह हमेशा काम करता है.
  4. अपने उत्पाद को किसी के भी सामने प्रस्तुत करने से पहले सामने वाले से उनकी खैरियत प्राथमिकता पर पूंछे, सामने वाले के जवाब के बाद यदि उचित लगे तभी ही अपने उत्पाद के बारे उसे अवगत कराएं अन्यथा नहीं.
  5. कभी भी अपने उत्पाद की तुलना बाजार में मौजूद अपने समकक्ष उत्पाद से कभी न करें और न ही अपने कर्मचारियों से कराएं, मनोविज्ञान के अनुसार किसी से तुलना करना आपमें क्रोध और रोष को पनपा सकता है.

मार्केटिंग के प्रकार (Types of Marketing/Product marketing example)-

मौजूदा मार्केट/बाजार में व्यक्ति को एक कारोबारी/व्यवसायीय अथवा उद्यमी या व्यापारी के रूप में 02 तरह की मार्केटिंग के स्तर (तरीके) देखने को मिलते हैं. जिसमें कई तरह की मार्केटिंग की जाती है साथ ही इन मार्केटिंग तरीकों को समय के अनुरूप अलग-अलग स्तरों पर अपनाकर उत्पाद की जागरूकता बढ़ाने के साथ बिक्री बढाई जाती है. मौजूदा बाजार में केवल 02 तरह से ही मार्केटिंग की जा सकती है-

  1. डिजिटल मार्केटिंग,
  2. पारंपरिक मार्केटिंग

ऑनलाइन मार्केटिंग और ऑफलाइन दोनों ही मार्केटिंग (विपणन) के बीच अंतर यह है कि अपने लक्षित ग्राहकों/उपभोक्ताओं तक पहुंचने के लिए जहां कोई प्रिंट प्रिन्ट मीडिया और वर्ड ऑफ माउथ (word of mouth) पर निर्भर करता है, वहीं कोई इंटरनेट और रेडियो व टेलीविजन का उपयोग करता है।

डिजिटल मार्केटिंग (Digital Marketing)- 

Digital Marketing जिसे ऑनलाइन (Online) के नाम से भी जाना जाता है. किसी भी ब्रांड के उत्पाद अथवा सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए जो प्रचार-प्रसार (विज्ञापन) इंटरनेट(सोशल मीडिया, मैसेज व ईमेल), TV, रेडियो के माध्यम किया जाता है. ऑनलाइन/डिजिटल मार्केटिंग के अंतर्गत आता है.

Digital Marketing का दायरा पारंपरिक मार्केटिंग से काफ़ी बड़ा और विस्तृत होता है. साथ ही Digital Marketing में विविधता की कोई सीमा निर्धारित नहीं होती, जिससे इसकी उपयोगिता और भी बढ़ जाती है.

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पारंपरिक मार्केटिंग (Traditional Marketing)-

पारंपरिक मार्केटिंग जिसे ऑफलाइन मार्केटिंग भी कहा जाता है, मार्केटिंग के इस तरीके का दायरा सीमित होता है, पारंपरिक मार्केटिंग के अंतर्गत किसी भी उत्पाद का प्रचार-प्रसार (product advertisement ideas) भौतिक स्तर (physical level) पर प्रिन्ट मीडिया आधारित…

जैसे- पोस्टर, स्टीकर, पैम्पलेट, फ्लैक्स, अख़बार व पत्रिका के माध्यम किया जाता है. पारंपरिक मार्केटिंग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे एक चिन्हित क्षेत्र में आसानी से और कम निवेश के साथ बड़ी मात्रा में किया जा सकता है.

उत्पाद की मार्केटिंग रणनीतियाँ (Product Marketing Strategies)-

मौजूदा बाजार में किसी भी उत्पाद की जागरूकता फ़ैलाने के लिए कई तरह की मार्केटिंग रणनीतियों और तरीकों (product marketing strategy) का उपयोग में लिया जाता है. कई ऐसे तरीके हैं जो बड़े-बड़े उद्यमी/कारोबारी चुपचाप करते हैं वो भी किसी भनक लगे बिना,

जिस कारण वे बाजार पर एकछत्र राज करते हैं, और अपने प्रतिस्पर्धियों को हमेशा धराशायी कर पनपने का मौका भी नहीं देते. ऐसे ही कुछ कारगर तरीकों की यहां चर्चा की गई है-

ऑफलाइन/ऑनलाइन मार्केटिंग कैसे काम करती है?

लक्षित ग्राहक, प्रासंगिक सामग्री बनाना, संदेश वितरित करने के लिए विज्ञापन (Advertisement), अपनेपन की भावना पैदा करने के लिए मौखिक प्रचार समुदाय द्वारा, ग्राहकों की संतुष्टि को बढ़ाने के लिए अनुकूल मंच (वेबसाइट या ऐप) प्रदान करना, ग्राहकहित में डेटा गोपनीयता की रक्षा प्रदान करना, उन्नत प्रौद्योगिकी एवं उपभोक्ता व्यवहार का चयन करना.

उपरोक्त सुझाए गए उपक्रमों के माध्यम से ऑफलाइन/ऑनलाइन मार्केटिंग जैसा घटक सफलतापूर्वक संचालित किया जाता है.

गुरिल्ला मार्केटिंग (Guerrilla Marketing)-

गुरिल्ला मार्केटिंग सन 1984 में जे कॉनराड लेविसन द्वारा अपनी पुस्तक “गुरिल्ला मार्केटिंग-सीक्रेट फॉर मेकिंग बिग प्रॉफिट फ्रॉम योर स्मॉल बिजनेस में गढ़ी गई एक अवधारणा है।”

यदि आपने अपने उत्पाद को अभी बाजार में नहीं उतारा है तो यह आपके लिए काफी हितकर साबित हो सकता है. आप अपने उत्पाद की pre-marketing आसानी से कर सकते है. असल में product launch से पहले की गई मार्केटिंग (pre-marketing) को गुरिल्ला मार्केटिंग के नाम से भी जाना जाता है. असल में गुरिल्ला मार्केटिंग, उत्पाद का प्रचार (product advertisement idea) करने की एक प्रभावी मार्केटिंग रणनीति/तरीका है.

गुरिल्ला मार्केटिंग को लगभग हर बड़े से बड़ी कंपनी प्राथमिकता पर जरूर करती है. उदाहरण के तौर पर- आपने PSPO का नाम तो सुना या TV पर विज्ञापन (TV advertisement) तो जरूर देखा ही होगा. जब यह विज्ञापन TV पर दिखाया जा रहा था तो किसी को भी पता नहीं था कि PSPO क्या है?

लोग विज्ञापन से प्रभवित (inspire by advertisement) होकर आपस में एक-दूसरे से बात करने लगे थे. जिससे PSPO तकनीक के पंखों के प्रति जागरूकता लोगों में व्याप्त हो गई, जिससे हुआ ये कि जब इस टेक्नोलॉजी के Fan लांच हुए तो हाथों-हाथ बिकते चले गए.

असल में PSPO एक नई टेक्नोलॉजी थी जिसे हवा देने वाले पंखों में प्रयोग किया जाता है. 90 के दशक की शुरुआत में Orient Electric ने क्रांतिकारी PSPO (Peak Speed Performance Output) तकनीक को विकसित किया और पेटेंट भी कराया, उनकी इस टेक्नोलॉजी ने पंखा उद्योग के दृष्टिकोण को पूरी तरह से बदल कर ही रख दिया.

गुरिल्ला मार्केटिंग के लिए विज्ञापन कैसे तैयार करें (How to Create An Ad)-

गुरिल्ला मार्केटिंग के अंतर्गत किसी भी तरह से उत्पाद के विज्ञापनों को एक पहेली (Twist) के अनुसार तैयार किया जाता है, पहेली जो अमूमन हर किसी में एक जिज्ञासा उत्पन्न करती है. लगभग सभी जनसामान्य (लोग) पहेली को हल करने के लिए एक-दूसरे चर्चा करना शुरू कर देते हैं. जिससे बाजार में आने वाले नए उत्पाद की मजबूत मार्केट खुद ब खुद तैयार हो जाती है.

जैसे- Orient कंपनी ने अपने नई टेक्नोलॉजी के fan के ग्राहक/उपभोक्ता (मार्केट) बनाने के लिए PSPO नाम की पहेली डाली थी.

यदि आपका कारोबार अभी छोटे या शुरूआती स्तर का है तो मेरे सुझाव से आप कुछ पोस्टर/स्टीकर आदि छपवाकर स्थानीय (लोकल) बाजार में ऐसे स्थानों पर चस्पा करवाएं जहां पर सभी की दृष्टी जाए. साथ ही पोस्टरों व स्टीकरों में उन चमकीले अथवा भड़कीले रंगों का उपयोग करें जो कम रोशनी में भी सभी को अच्छे से दिखाई दे.

साथ ही विज्ञापन आदि में ऐसे शब्दों का चयन करें जो लोगों को आकर्षित करने के साथ-साथ जिज्ञासा भी उत्पन्न करे. यदि आप ऐसा कर लेते हैं तो कुछ ही दिनों बाद आप पाएँगे कि लोग एक ऐसे प्रोडक्ट की चर्चा कर रहे हैं जो अभी बाजार में आया ही नहीं है, और लोग बड़े उत्सुक हैं उस उत्पाद को जानने/पाने के लिए.

वहीँ यदि आप अपने उत्पाद को बाजार में उतार चुके हैं, पर ग्राहक आपके उत्पाद में रूचि (Interest in Product) नहीं ले रहे है तो इसका मतलब है कि आपने अपने उत्पाद की मार्केटिंग पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया. नए उद्यमियों के लिए सबसे कष्टदायक क्षण (difficult time) वह होता है जब उसके द्वारा निर्मित उत्पाद में कोई रूचि न लें.

इस समस्या के समाधान के लिए सबसे पहले आपको गुरिल्ला मार्केटिंग की रणनीति (new product marketing plan) को अपनाकर फिर से उत्पाद के प्रचार-प्रसार (Product advertisement) करने की जरूरत है.

उपहार मार्केटिंग (Gift Marketing)-

मार्केटिंग के इस तरीके में उद्यमी द्वारा अपने उत्पाद के साथ एक उपहार (gift) दिया जाता है, इस उपहार (gift) के चयन में ऐसी वस्तु का चुना जाता है, जो कम्पनी की ब्रांड का प्रचार करने के साथ तथा ग्राहक के दैनिक उपयोग अथवा दृष्टी में भी आती हो.

जैसे: की-चेन, कैलेण्डर, दिवाल घड़ी, पेन, नोटबुक व नोटपैड, थैले आदि. इसके साथ ही उपहार (gift) में दी जाने वाली वस्तुओं का चुनाव मूल उत्पाद के अनुसार भी किया जा सकता है.

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उपहार मार्केटिंग (gift marketing) भी एक कारगर तरीका है. हां, मार्केटिंग के इस तरीके में उद्यमी द्वारा थोड़ा निवेश जरूर अधिक होता है, लेकिन उपहार पर की गई ब्रांडिंग के कारण लोग आपके उत्पाद को अच्छे से जानने लगते हैं, जो सेल्स की दृष्टी (sales point of view) से अच्छे लाभ को इंगित करता है.

नए ग्राहक की खोज कैसे की जा सकती है?

नए ग्राहकों की खोज करना सदैव निरंतर चलने वाली प्रक्रिया के अंतर्गत आता है. कभी प्रत्यक्ष तो कभी कभी परोक्ष रूप से रणनीति बनाकर (विशेषकर रियल एस्टेट और हॉस्पिटैलिटी जैसे क्षेत्रों में) नए ग्राहकों की खोज करने के लिए कई तरीके अपनाये जाते हैं. साधारण तौर पर नीचे सुझाए गए बिंदुओं को समझे-

1. निरंतर मार्केटिंग और प्रचार-प्रसार कार्यक्रमों का सञ्चालन करते रहना.
2. प्रत्येक प्रकार की मीडिया प्लेटफॉर्मों का उपयोग कर उन पर अपने उत्पादों/सेवाओं को प्रमोट करना.
3. नियमित रूप से नए, पुराने ग्राहकों के संपर्क में रहना और उनकी समस्याओं को सुलझाने में मदद करने के साथ उनसे अपने सम्बन्धित उत्पादों/सेवाओं पर फीडबैक लेते रहना.
4. ऑनलाइन विज्ञापन जैसे Google व Facebook विज्ञापन में सक्रियता बढ़ाने का प्रयास करना.
5. वेबसाइट व ब्लॉग के माध्यम से अपने सम्बन्धित उत्पादों/सेवाओं की जानकारी लोगों तक पहुचाने  का प्रयास करते रहना.

ये कुछ आम लेकिन कारगर तरीके हैं, जो आपके व्यवसाय की बुनियाद रखने और सफलता की सीढी चढ़ने का पथ तैयार कर सकते हैं.

मार्केटिंग और सेल्स को समझना (difference between sales and marketing in hindi)-

अमूमन नए उद्यमियों को सेल्स और मार्केटिंग क्या है? के अंतर को समझने में सबसे ज्यादा समस्या होती है, जबकि अगर विश्लेष्णात्मक नजरिये से आंकलन किया जाए तो इसको समझने पर सारे सवाल खुद ब खुद हल हो जाते हैं. फिर भी सहूलियत के लिए इसे परिभाषित करने का प्रयास करता हूँ-

सेल्स (Sales)-

सेल्स जिसका मतलब होता है बिक्री (बेचना). उत्पाद को बेचने की प्रक्रिया, मार्केटिंग से पूरी तरह से एक अलग प्रक्रिया है. मसलन जब उत्पाद की मांग बढती है तब ही उस उत्पाद की बिक्री (सेल्स) बढती है. देखा जाए तो यह कहना बिल्कुल सटीक है कि सेल्स पूरी तरह से मार्केटिंग पर ही निर्भर करती है.

मार्केटिंग (Marketing)-

उत्पाद के प्रति जागरूकता व्याप्तकर कर उत्पाद की मांग को बढ़ाना ही मार्केटिंग करना होता है. मार्केटिंग के जरिये सेल्स को बढ़ाया जा सकता है, न कि सेल्स से मार्केटिंग को. आज मार्केटिंग को कई उन्नत एवं कारगर तरीको से किया जाता है, जिसे ऊपर लेख में बताया गया है.

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मार्केटिंग कितने प्रकार की होती है?

मौजूदा समय में मार्केटिंग मूल रूप से 02 प्रकार कि होती है-
1. डिजिटल मार्केटिंग
2. पारंपरिक मार्केटिंग

मौजूदा बाजार को आंकलन करने पर किसी भी नए स्टार्टअप के लिए शुरुआती चरण में डिजिटल मार्केटिंग बेहतर साबित हो रही, जबकि पारंपरिक मार्केटिंग की तय सीमाओं के कारण प्रभावी होने में थोडा अधिक समय लग जाता है.

सेल्स और मार्केटिंग को परिभाषित कीजिये.

सेल्स से आशय है- उत्पाद की बिक्री. जबकि मार्केटिंग का मतलब होता है- अपने उत्पाद की विशेषताओं से सभी उपभोक्ताओं/ग्राहकों को जागरूक करना. मार्केटिंग केवल ग्राहकों को उत्पाद के प्रति जागरूक कर वांछित उत्पाद की बिक्री के लिए आकर्षित करना होता है.

मार्केटिंग और सेल्स दोनों एक दूसरे से सम्बंधित हो सकते हैं, परन्तु वास्तव में दोनों की अलग-अलग भूमिका होती हैं.

बिजनेस की मार्केटिंग से पहले क्या business insurance कराना सही है?

प्रत्येक उद्यमी अपने बिजनेस में होने वाले अवांछित नुकसानों व जोखिमों से बचने के लिए निरंतर प्रयास करता रहता है. business insurance एक ऐसी सुविधा है, जिससे लेकर कई जाने-अनजाने अवांछित नुकसानों व जोखिमों जैसे- Business Liability, Public Liability आदि से आसानी से बचा जा सकता है.

बिजनेस में अधिकतर गलतियाँ मार्केटिंग में ही होती हैं, इसलिए बिजनेस की मार्केटिंग से पहले business insurance कराना सही और सकारात्मक कदम माना जाता है.

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अंत में-

हमारा उद्देश्य उन इच्छुक उम्मीदवारों, उद्यमियों, व्यवसायियों, व्यापारियों और कारोबारियों को बेहतर से बेहतरीन जानकारी प्रदान करना है, जो अपने उत्पाद की मार्केटिंग, एक बेहतर रणनीति बनाकर अपने व्यवसाय को उच्च से उच्चतम शिखर तक पहुंचने के इच्छुक हैं और अपने निर्मित उत्पाद से अच्छा मुनाफा भी कमाना चाहते हैं.

नोट- किसी भी मार्केटिंग को शुरू करने से पहले वांछित उत्पाद की बाजार/मार्केट रिसर्च एवं खपत का आंकलन अनिवार्य रूप से अवश्य करें. ऐसा करने से आपक मार्केटिंग के तहत आने वाले जोखिम और दिक्कतों का सामना करने में आसानी हो जाएगी और की गई मार्केटिंग के आधार पर उत्पाद की बाजार में डिमांड के अनुरूप आप अपने products का निर्माण भी अच्छे से कर पाएंगे.

आशा है इस लेख “उत्पाद की मार्केटिंग कैसे करें” से आपको मार्केटिंग से जुड़े कई प्रश्नों का समाधान और मार्केटिंग से सम्बंधित आवशयक जानकारी जरूर मिली होगी, साथ ही… यदि कुछ पूछना चाहते हों तो कृपया comment box में जरूर लिखें. लेख पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तों व जरूरतमंदों के साथ share करना न भूलें. अभी तक के लिए इतना ही-

शुभकामनाएं आपके कामयाब और सफल व्यापारिक भविष्य के लिए.

धन्यवाद!

जय हिंद! जय भारत!

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